दिल्ली , 19 अप्रैल 2025 :
Delhi News: दिल्ली हाईकोर्ट हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी के डॉक्टरों द्वारा उनके निर्देशों का पालन न किए जाने से नाखुश दिखी. कोर्ट ने यौन उत्पीड़न पीड़िताओं द्वारा गर्भपात की मांग पर किसी भी प्रकार की देरी किए बिना मेडिकल पैनल गठित करने के निर्देश दिए थे. जस्टिस स्वर्ण कांता शर्मा ने 25 जनवरी 2023 और 3 नवंबर 2023 को पारित किए गए निर्देशों के अनुपालन की स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण बनी हुई है. इन आदेशों के तहत अस्पतालों को मेडिकल बोर्ड गठित कर ऐसे मामलों की तुरंत जांच करने को कहा गया था.
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने 2023 के निर्देशों की मंशा को दोहराते हुए कहा कि यदि कोई यौन उत्पीड़न पीड़िता 24 सप्ताह से अधिक की गर्भवती है, तो उसकी मेडिकल जांच तुरंत की जानी चाहिए और संबंधित रिपोर्ट तैयार रखी जानी चाहिए, ताकि जब पीड़िता या उसके परिजन गर्भपात के लिए अदालत जाएं, तो देरी न हो.
जमीनी स्तर पर स्थिति में कोई विशेष बदलाव न देखकर कोर्ट ने कहा यौन उत्पीड़न के कारण गर्भधारण करने वाली पीड़िता की गर्भावस्था समाप्त करने की प्रक्रिया को तेज और व्यवस्थित करने की मंशा, दुर्भाग्यवश, प्रभावी और समयबद्ध कार्रवाई में तब्दील नहीं हो सकी है.
क्या है पूरा मामला
मामला एक 15 वर्षीय नाबालिग पीड़िता से संबंधित था, जो 27 सप्ताह से अधिक की गर्भवती थी जो कि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (एमटीपी) एक्ट के तहत अनुमन्य 24 सप्ताह की समय सीमा से अधिक था. जब पीड़िता के माता-पिता दिल्ली सरकार के एलएनजेपी अस्पताल में गर्भपात के लिए पहुंचे तो अस्पताल ने यह कहते हुए कोर्ट का आदेश लाने को कहा कि भ्रूण की आयु 24 सप्ताह से अधिक हो चुकी है.
हाईकोर्ट ने अपने पूर्व निर्देशों के अनुपालन न होने पर खेद व्यक्त किया और कहा कि राजधानी के आठ सरकारी व पांच निजी अस्पतालों में बनाए गए स्थायी मेडिकल बोर्ड को अदालत के आदेश की प्रतीक्षा किए बिना ही पीड़िता की जांच कर रिपोर्ट तैयार कर लेनी चाहिए थी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने सिस्टम पर उठाया सवाल
दो साल बीत जाने के बावजूद दिशा-निर्देशों के पालन में लापरवाही पर कोर्ट ने सवाल उठाए और कहा कि यौन उत्पीड़न के कारण गर्भवती हुई पीड़िता को कई दिनों तक अदालत के आदेश का इंतजार करना पड़ा, जो उसके लिए किसी राहत का कारण नहीं बना. इसलिए कोर्ट ने अब एक नया दिशा-निर्देश जारी किया है ताकि नाबालिग रेप पीड़िताओं को मेडिकल सपोर्ट के साथ-साथ उचित और समय पर कानूनी मार्गदर्शन मिल सके.
कोर्ट ने कहा कि सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े तबके से आने वाली नाबालिग पीड़िताएं अक्सर यह नहीं जानतीं कि गर्भपात के लिए किस कानूनी मंच का रुख करें या प्रक्रिया क्या है.
दिल्ली HC ने बनाई नई गाइडलाइन
दिल्ली हाईकोर्ट द्वारा बनाए नए निर्देशों के अनुसार, जब भी कोई नाबालिग पीड़िता जिसकी गर्भावस्था 24 सप्ताह से अधिक हो, बाल कल्याण समिति के समक्ष पेश की जाती है और उसे मेडिकल जांच या गर्भपात के लिए किसी अस्पताल में भेजा जाता है, तो उस स्थिति में बाल कल्याण समिति को दिल्ली हाईकोर्ट लीगल सर्विसेज कमेटी को सूचित करना होगा.
कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि पीड़िता या उसके परिवार की सहमति से गर्भपात कराया जा सकता है और अदालत से तत्काल आदेश की आवश्यकता हो, तो ऐसे मामलों में अस्पताल को पीड़िता के भर्ती होने की सूचना मिलते ही गर्भपात की व्यवस्था करनी होगी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया अहम निर्देश
इस मामले में भी अदालत ने अस्पताल को निर्देश दिया कि पीड़िता का गर्भपात कराया जाए और भ्रूण के ऊतकों को संरक्षित किया जाए ताकि आपराधिक मामले में डीएनए परीक्षण किया जा सके. कोर्ट ने आदेश दिया राज्य को पीड़िता के गर्भपात, दवाइयों और भोजन का पूरा खर्च उठाना चाहिए और यदि बच्चा जीवित पैदा होता है, तो अस्पताल अधीक्षक को यह सुनिश्चित करना होगा कि बच्चे को हर संभव सुविधा दी जाए.
इस बीच, हाईकोर्ट ने एलएनजेपी अस्पताल के मेडिकल अधीक्षक से यह स्पष्ट करने को कहा है कि पीड़िता की मेडिकल जांच और रिपोर्ट तैयार करने में एक सप्ताह की देरी क्यों हुई.