सीजी भास्कर, 9 नवंबर। राजधानी रायपुर में आवारा कुत्तों (Stray Dogs in Raipur) और मवेशियों का आतंक लगातार बढ़ता जा रहा है। शहर के लगभग हर वार्ड और मोहल्ले में कुत्तों के झुंड खुलेआम घूमते नजर आते हैं। अनुमान के मुताबिक रायपुर नगर निगम क्षेत्र में करीब 10 से 12 हजार आवारा कुत्ते हैं, लेकिन नगर निगम की बधियाकरण व्यवस्था केवल दिखावा बनकर रह गई है। बैरनबाजार स्थित निगम का एकमात्र डॉग सर्जरी सेंटर ही इस काम को संभाल रहा है, जहां रोजाना पांच से सात कुत्तों के बधियाकरण का दावा किया जाता है, जबकि वास्तविक संख्या इससे बहुत कम है।
राजधानी में खूंखार कुत्तों (Stray Dogs in Raipur) के हमले की घटनाएं लगातार सामने आ रही हैं। स्कूल, अस्पताल, कॉलोनी और बाजारों में बच्चों व बुजुर्गों को निशाना बनाए जाने के कई मामले दर्ज हो चुके हैं। बावजूद इसके, नगर निगम के पास पर्याप्त संसाधन नहीं हैं। ऐसे में शहर के नागरिकों में भय का माहौल है।
सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में देशभर के शहरी निकायों को निर्देश दिया है कि वे स्कूल, अस्पताल और सार्वजनिक स्थलों में आवारा कुत्तों (Stray Dogs in Raipur) की आवाजाही रोकने के लिए ठोस कदम उठाएं। आदेश में कहा गया है कि इन परिसरों के चारों ओर सुरक्षा बाड़ लगाई जाए और कुत्तों के प्रबंधन के लिए स्थानीय निकाय स्थायी व्यवस्था विकसित करें।
इस आदेश के बाद रायपुर नगर निगम की जिम्मेदारी और बढ़ गई है। अधिकारियों का कहना है कि जैसे ही सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रति प्राप्त होगी, उसी के अनुरूप विस्तृत कार्ययोजना तैयार की जाएगी। जानकारों का अनुमान है कि इस व्यवस्था को लागू करने में चार से पांच करोड़ रुपये तक का खर्च आएगा।
(Stray Dogs in Raipur) मवेशियों का भी हाल बदहाल
सिर्फ कुत्तों का ही नहीं, बल्कि सड़कों पर विचरने वाले मवेशियों का भी हाल बदहाल है। निगम के रिकॉर्ड के अनुसार पिछले तीन महीनों में 1,300 से अधिक मवेशियों को पकड़कर गोठानों में भेजा गया है, लेकिन इससे ज्यादा संख्या में अब भी मवेशी सड़कों और बाजारों में घूम रहे हैं। इससे ट्रैफिक जाम और दुर्घटनाओं की आशंका लगातार बनी रहती है।
वर्तमान में नगर निगम के 10 जोनों में सिर्फ एक डॉग कैचर कार्यरत है। बैरनबाजार स्थित बधियाकरण केंद्र में पांच अस्थायी कर्मचारी और दो पशुचिकित्सक सेवाएं दे रहे हैं। जगह की कमी के कारण जिस इलाके से कुत्तों को पकड़ा जाता है, ऑपरेशन के बाद उन्हें फिर उसी इलाके में छोड़ दिया जाता है। इससे समस्या सुलझने के बजाय और बढ़ जाती है।
शहरवासियों का कहना है कि निगम को आवारा कुत्तों और मवेशियों की समस्या के लिए ठोस और स्थायी नीति बनानी चाहिए। नागरिकों ने मांग की है कि बधियाकरण और टीकाकरण की प्रक्रिया को तेज किया जाए, आश्रय गृहों की संख्या बढ़ाई जाए और हर वार्ड में जिम्मेदारी तय की जाए, ताकि लोगों को राहत मिल सके।
