सीजी भास्कर, 15 सितंबर। जी हां, हम बात कर रहे हैं छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव शहर में स्थापित रियासतकालीन गणेश मंदिर की। जिसका निर्माण 1866 में दास राजाओं ने करवाया था और आज भी यहां गणेश उत्सव का 158वां वर्ष धूमधाम से मनाया जा रहा है, इस मंदिर के प्रति छत्तीसगढ़ सहित अन्य राज्यों के भी लोगों की गहरी आस्था रही है।
आपको बता दें कि राजमहल में राजनांदगांव जिले के सबसे पहले गणेश मंदिर की स्थापना दास राजा द्वारा ही की गई थी। राज महल के द्वार के समीप भगवान गणेश मंदिर का निर्माण यहां की सुख समृद्धि और नगर कल्याण के दृष्टिकोण से राज परिवार की परम्परा अनुसार करवाई गई थी। राजनांदगांव के रियासतकालीन इस राजमहल का वर्तमान उपयोग शासकीय दिग्विजय कॉलेज के रूप में हो रहा है। वर्ष 1866 में श्री गणेश मंदिर की स्थापना की गई थी और तब से आज तक लगभग 158 वर्षों से इस मंदिर में भगवान गणेश की पूजा अर्चना हो रही है।
गौरतलब हो कि इसी मंदिर में विश्वविख्यात मूर्धन्य कवि गजानन माधव मुक्तिबोध, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी और डाक्टर बलदेव प्रसाद मिश्र ने आराधना करते हुए अपनी कई रचनाओं का निर्माण किया था।
मनोकामना पूरी होने पर भक्त चढ़ाते हैं चांदी का छत्र, 16 से 124 हो गए हैं-पंडित जितेन्द्र झा
वर्तमान में तात्कालीन राजपुरोहित के पुत्र पंडित जितेंद्र झा ने बताया कि यह गणेश मंदिर जिले का पहला गणेश मंदिर है जहां बड़ी संख्या में लाखों लोग आते हैं और अपनी मनोकामना के लिए पूजा अर्चना करते हैं। यहां मनोकामना पूरी होने पर श्रद्धालुओं द्वारा चांदी का छत्र चढ़ाने की परंपरा भी है। उन्होंने बताया कि जब इस मंदिर की जिम्मेदारी उन्हें मिली थी तब 16 चांदी के छत्र थे जो आज 124 हो गए हैं।
मूर्तिकार ने होने से नागपुर से आती थी प्रतिमा, 1931 में पांडुरंग कालेश्वर निर्मित मूरत थी स्थापित
इतिहासकारों के अनुसार इसी गणेश मंदिर में यहां के राजाओं द्वारा गणेश उत्सव के पर्व के दौरान गणेश प्रतिमा स्थापित की जाने लगी। उस दौर में राजनांदगांव में मूर्तिकार नहीं होने के चलते प्रतिमा नागपुर से मंगवाई जाती थी और यहां पर अलग से मिट्टी की प्रतिमा 10 दिनों के लिए स्थापित की जाती रही है।
विदित हो कि वर्ष 1931 में राजनांदगांव के मूर्तिकार पांडुरंग कालेश्वर द्वारा बनाई गई मूर्ति राजमहल में स्थापित की गई थी। आज भी गणेश मंदिर में प्राचीन प्रतिमा स्थल पर ही भगवान गणेश की प्रतिमा स्थापित की जाती है। जिसे विधि विधान के साथ विसर्जित कर दिया जाता है।
तब मौखिक वैवाहिक निमंत्रण चढ़ते रहे अब पहला शादी का कार्ड यहीं चढ़ता है
रियासतकालीन प्राचीन गणेश मंदिर में वैवाहिक निमंत्रण देने की भी अनोखी परंपरा है। यहां पर उस दौर में जहां मौखिक निमंत्रण भगवान गणेश को दिया जाता था तो वहीं अब वैवाहिक कार्ड मंदिर में चढ़ने के बाद ही अन्य लोगों को निमंत्रण दिया जाता है। राजमहल के आसपास निवासरत लोग आज भी इस परंपरा को पूरी निष्ठा से निभाते हैं।