सीजी भास्कर, 19 दिसंबर। कभी जिन हाथों में हिंसा का रास्ता था, आज उन्हीं हाथों से विकास की इमारत खड़ी हो रही है। छत्तीसगढ़ के सुकमा (Sukma Naxal Rehabilitation) जिले में नक्सल प्रभावित क्षेत्रों के लिए अपनाई गई पुनर्वास नीति अब ज़मीन पर बदलाव की ठोस मिसाल बनती दिख रही है।
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय की पहल पर सुकमा में आत्मसमर्पित युवाओं को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने का प्रयास तेज़ी से आगे बढ़ रहा है। इसी क्रम में पुनर्वास केंद्र में रह रहे 35 आत्मसमर्पित नक्सलियों को राजमिस्त्री का व्यावसायिक प्रशिक्षण दिया जा रहा है, जिससे वे आत्मनिर्भर बन सकें और सम्मानजनक जीवन जी सकें।
यह पहल सुकमा जिले में चल रहे पुनर्वास कार्यक्रम (Sukma Naxal Rehabilitation) का अहम हिस्सा है, जहां जिला प्रशासन और एसबीआई आरसेटी के संयुक्त सहयोग से प्रशिक्षण संचालित किया जा रहा है।
प्रशिक्षण में 15 महिलाएं और 20 पुरुष शामिल हैं, जिन्हें भवन निर्माण से जुड़ी बुनियादी और उन्नत तकनीकों का चरणबद्ध प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसमें नींव निर्माण, ईंट चिनाई, प्लास्टर, छत ढलाई और गुणवत्ता मानकों की व्यावहारिक जानकारी शामिल है, ताकि प्रशिक्षण पूरा होने के बाद वे सीधे कार्यस्थल पर काम कर सकें।
प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद ये युवा प्रधानमंत्री आवास योजना (ग्रामीण) सहित विभिन्न शासकीय निर्माण कार्यों में भागीदारी करेंगे। इससे एक ओर उन्हें स्थायी रोजगार मिलेगा, वहीं दूसरी ओर नक्सल प्रभावित और दूरस्थ इलाकों में कुशल श्रमिकों की कमी भी दूर होगी। यह पहल न केवल आर्थिक पुनर्वास बल्कि सामाजिक पुनर्स्थापन का भी मजबूत उदाहरण है, जो आत्मसमर्पण और पुनर्वास (Sukma Naxal Rehabilitation) की अवधारणा को व्यवहारिक रूप देता है।
कलेक्टर देवेश ध्रुव के अनुसार, आत्मसमर्पण का वास्तविक अर्थ हथियार छोड़ने के साथ आत्मनिर्भर बनना है। जिला प्रशासन का लक्ष्य है कि पुनर्वास केंद्र में रह रहे युवाओं को कौशल, पहचान और रोजगार के सभी अवसर मिलें। जिला पंचायत के मुख्य कार्यपालन अधिकारी मुकुन्द ठाकुर ने बताया कि इस प्रशिक्षण से प्रधानमंत्री आवास योजना जैसे कार्यक्रमों को कुशल मानव संसाधन मिलेगा।
पोलमपल्ली निवासी पोड़ियम भीमा और पुवर्ती की मुचाकी रनवती जैसे पुनर्वासित युवाओं का कहना है कि प्रशिक्षण और शासकीय सहयोग से उनका जीवन पूरी तरह बदल गया है। आधार कार्ड, आयुष्मान कार्ड, राशन कार्ड और रोजगार से जुड़ी सुविधाओं ने उन्हें नया आत्मविश्वास दिया है। सुकमा में चल रहा यह प्रयास बताता है कि संवाद, संवेदना और विकास के जरिए हिंसा छोड़ चुके युवाओं को नई पहचान दी जा सकती है। यही स्थायी शांति की नींव (Sukma Naxal Rehabilitation) है।


