सीजी भास्कर, 11 दिसंबर। भारत और अमेरिका के बीच चल रही ट्रेड डील अब सिर्फ कूटनीतिक संवाद का हिस्सा नहीं, बल्कि एक ऐसे मोड़ पर पहुंच (Supply Chain Partnership) चुकी है जहां हर नई बैठक आगे बढ़ते कदम का संकेत देती है। लंबे समय से लटकी इस डील पर फिर रफ्तार दिखाई देने लगी है।
अमेरिकी व्यापार प्रतिनिधि (USTR) का प्रतिनिधिमंडल दिल्ली पहुंच चुका है और दो दिनों के उच्चस्तरीय दौर की शुरुआत भी हो चुकी है—एक ऐसा दौर जिसकी दिशा आने वाले दशक के आर्थिक समीकरण तय कर सकती है।
केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री पीयूष गोयल ने संकेत दिए हैं कि भारत–अमेरिका ट्रेड वार्ता केवल आगे बढ़ नहीं रही, बल्कि उन बिंदुओं पर भी प्रगति दिखा (Supply Chain Partnership) रही है जहां वर्षों से गतिरोध बना हुआ था। सूत्रों का कहना है कि जिन मुद्दों पर त्वरित समाधान संभव है, दोनों पक्ष पहले उन्हें निपटाने के इच्छुक हैं, ताकि बड़ा, संरचनागत और बहु-स्तरीय समझौता आगे सहज मार्ग पा सके।
वार्ता में कृषि उत्पादों की पहुंच, स्टील और एल्यूमिनियम पर शुल्क, मेडिकल उपकरणों की अनुमतियाँ, डेटा एवं आईटी सेवाएं, और भारतीय निर्यात के लिए विस्तृत अमेरिकी बाजार जैसी प्रमुख फ़ाइलें सामने रखी गई हैं। अमेरिकी पक्ष चाहता है कि भारत कुछ उत्पादों पर ऊंचा टैरिफ कम करे, जबकि भारत बदले में तकनीकी, कृषि और मैन्युफैक्चरिंग निर्यात के लिए स्थिर और दीर्घकालिक अमेरिकी बाजार अवसर सुनिश्चित करना चाहता है।
पिछले दो वर्षों में कुछ प्रमुख विवादों के सुलझने से बातचीत का माहौल (Supply Chain Partnership) अलग तरह का आत्मविश्वास लिए हुए है। भारत ने कई अमेरिकी कृषि उत्पादों पर शुल्क नरम किया, वहीं अमेरिका ने भारतीय स्टील से जुड़े शुल्क विवादों को कम स्तर पर लाने की कवायद दिखाई। यह माहौल निवेश और उत्पादन साझेदारी की संभावनाओं को नया रास्ता देता है।
दिलचस्प पहलू यह है कि 2023–24 में भारत–अमेरिका द्विपक्षीय व्यापार लगभग 200 अरब डॉलर छू चुका है। लक्ष्य है—2030 तक इसे दोगुना कर 400 अरब डॉलर तक ले जाना। विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर इसी चरण में समझौते की रूपरेखा ठोस होती है, तो आगामी वर्षों में तकनीकी ट्रांसफर, सप्लाई चेन स्थिरता, रक्षा–उद्योग सहयोग और एआई–डिजिटल अर्थव्यवस्था तक प्रभाव देखने को मिल सकता है। यही कारण है कि वैश्विक आर्थिक संस्थान इस वार्ता पर पैनी नजर टिकाए बैठें हैं—क्योंकि परिणाम केवल भारत और अमेरिका तक सीमित नहीं रहेंगे, बल्कि बहुपक्षीय ट्रेड सिस्टम की दिशा भी बदल सकते हैं।


