सीजी भास्कर, 28 अक्टूबर। देश में सिविल जजों की धीमी करियर प्रगति को लेकर सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Civil Judges Promotion) ने मंगलवार को अहम याचिका पर सुनवाई शुरू की। याचिका में कहा गया है कि उच्च जिला न्यायिक सेवाओं के कैडर में वरिष्ठता तय करने के लिए एक समान देशव्यापी मानदंड अब तक तय नहीं किया गया है।
वरिष्ठता तय करने के लिए एकरूप नीति की जरूरत
प्रधान न्यायाधीश बी. आर. गवई की अध्यक्षता में गठित पांच जजों की संविधान पीठ ने इस स्थिति पर गंभीर चिंता व्यक्त की कि देश के अधिकतर राज्यों में सिविल जज (सीजे) के रूप में नियुक्त अधिकारी अपने पूरे कार्यकाल में बमुश्किल प्रमुख जिला जज (पीडीजे) तक पहुंच पाते हैं। पीठ में न्यायमूर्ति सूर्यकांत, विक्रम नाथ, के. विनोद चंद्रन और जोयमाल्या बागची शामिल हैं। न्यायालय ने कहा कि इस कारण कई प्रतिभाशाली युवा वकील न्यायिक सेवा में आने से बचते हैं, जिससे न्याय प्रणाली में अनुभव और योग्यता का संतुलन प्रभावित होता है।
करियर प्रगति में देरी से घट रहा उत्साह
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court Civil Judges Promotion) ने कहा कि कई राज्यों में पदोन्नति और वरिष्ठता तय करने का तरीका अलग-अलग है — कहीं यह सेवा वर्ष पर आधारित है तो कहीं मूल्यांकन रिपोर्ट पर। ऐसी असमान व्यवस्था से न्यायिक सेवाओं में करियर प्रगति की पारदर्शिता पर प्रश्न उठते हैं। अदालत ने कहा कि एक समान नीति बनने से न्यायिक अधिकारियों में उत्साह और स्थिरता दोनों आएंगे।
14 अक्टूबर की सुनवाई में उठा था सवाल
14 अक्टूबर की सुनवाई में पीठ ने पूछा था कि उच्च न्यायिक सेवाओं में वरिष्ठता तय करने का मानदंड आखिर क्या होना चाहिए। पीठ ने स्पष्ट किया था कि अब केवल प्रमोशन नीति ही नहीं, बल्कि इससे जुड़े सभी पहलुओं चयन, योग्यता, और पदोन्नति के ढांचे पर विचार किया जाएगा। इस मामले को वरिष्ठ अधिवक्ता और एमिकस क्यूरी सिद्धार्थ भटनागर ने उठाया था, जिन्होंने कहा कि न्यायिक अधिकारियों की धीमी पदोन्नति से न्यायपालिका की कार्यक्षमता प्रभावित हो रही है।
एक देश, एक प्रमोशन नीति
कानूनी विशेषज्ञों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट की यह पहल (Supreme Court Civil Judges Promotion) आने वाले समय में न्यायिक सेवा ढांचे में बड़ा सुधार ला सकती है। यदि अदालत ने एक समान नीति तय की, तो सिविल जजों को समय पर पदोन्नति, बेहतर करियर अवसर और हाईकोर्ट स्तर तक पहुंचने के अधिक मौके मिलेंगे।
