सीजी भास्कर, 28 मार्च। जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ एफआईआर की मांग करने वाली याचिका सुनने से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है. जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्ज्वल भुइयां की बेंच ने याचिकाकर्ता से कहा कि मामले की जांच के लिए इन हाउस कमेटी बनाई जा चुकी है. उसकी रिपोर्ट आने के बाद चीफ जस्टिस संजीव केस दर्ज करवाने समेत सभी विकल्पों पर विचार करेंगे.
मुंबई के रहने वाले 4 याचिकाकर्ताओं ने कहा था कि जज के घर पर बड़ी मात्रा में पैसा मिलना एक आपराधिक मामला है. इसके लिए 3 जजों की जांच कमेटी बनाने की बजाय पुलिस समेत दूसरी एजेंसियों को जांच के लिए कहना चाहिए था. वकील मैथ्यूज नेदुंपरा, हेमाली कुर्ने, राजेश आद्रेकर और चार्टर्ड एकाउंटेंट मनीषा मेहता की याचिका में 1991 में के वीरास्वामी मामले में आए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले का भी विरोध किया गया है. उस फैसले में कहा गया था कि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ एफआईआर से पहले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की सहमति जरूरी है.
सभी याचिकाकर्ताओं की तरफ से नेदुंपरा कोर्ट के सामने पेश हुए. जस्टिस ओका ने उन्हें देखते ही कहा कि उन्होंने याचिका पढ़ ली है. जस्टिस ओका ने कहा कि अभी इस तरह की मांग पर सुनवाई का अवसर नहीं आया है. चीफ जस्टिस ने जांच कमेटी बनाई है. उसकी रिपोर्ट आने के बाद उसे संसद के पास भेजने से लेकर एफआईआर का आदेश देने तक सभी विकल्प खुले हैं.
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि कुछ साल पहले केरल हाई कोर्ट के एक जज के खिलाफ पॉक्सो एक्ट जैसे गंभीर कानून का मामला आया था, लेकिन जजों के खिलाफ जांच की मौजूदा व्यवस्था के चलते एफआईआर दर्ज ही नहीं हुई. जस्टिस ओका ने कहा कि आप आज एक दूसरे मामले के लिए यहां आए हैं. उसकी मौजूदा स्थिति के बारे में हमने आपको बता दिया है.
वकील ने बार-बार आम आदमी के भरोसे को बनाए रखने की बात कही. इस पर जज ने कहा, ‘हम समझ गए कि आप आम आदमी की आवाज उठाना चाहते हैं, लेकिन मौजूदा व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों से बनी है. उसके पीछे की मंशा को आम लोग भी समझ सकते हैं.’
सुनवाई के अंत मे याचिकाकर्ता ने जजों के खिलाफ जांच के लिए 2010 में ज्यूडिशियल स्टैंडर्ड्स एंड अकाउंटेबिलिटी बिल के संसद में पास न हो पाने की चर्चा की. उन्होंने कहा कि इस तरह का कानून बनाया जाना चाहिए. इस पर जजों ने कहा कि वह संसद को कोई निर्देश नहीं दे सकते