सीजी भास्कर, 14 जुलाई |
बिलासपुर हाईकोर्ट ने हत्या के मामले में 6 साल की बच्ची की गवाही को सजा के लिए पर्याप्त साक्ष्य मानते हुए आरोपियों की अपील को खारिज कर दी है। कोर्ट ने उसकी गवाही के लिए अन्य किसी सहायक साक्ष्य की आवश्यकता नहीं माना है। मामले की सुनवाई जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डीबी में हुई। कोर्ट ने आरोपियों को सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की छूट दी है।
दरअसल, कांकेर निवासी राज सिंह पटेल ने 13 दिसंबर 2016 को पुलिस को सूचना दी कि, गांव के मानसाय ने फांसी लगा ली है। मामले में पुलिस ने 8 जनवरी 2017 को मृतक की 6 साल की बेटी का बयान दर्ज किया। बच्ची ने पुलिस को बताया कि घटना की रात आरोपी पंकू ने उसके पिता के पेट में लात मारा फिर स्कार्फ से गला दबाकर देवता घर में ले गया और बीच के मयार में लटका दिया।
मां ने बेटी को चिल्लाने से रोका
उस समय उसकी मां चूल्हे के पास बैठकर आग ताप रही थी, उसने चिल्लाने की कोशिश की, तो उसकी मां ने रोक दिया। बच्ची के बयान पर पुलिस ने धारा 302, 201, 34 के तहत केस दर्ज कर मृतक की पत्नी सगोर बाई और आरोपी पंकू को गिरफ्तार कर न्यायालय में चालान पेश किया।
बच्ची की गवाही पर आजीवन कारावास की सजा
अपर सत्र न्यायाधीश ने बच्ची की गवाही पर दोनों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। सजा के खिलाफ आरोपियों ने हाईकोर्ट में अपील की। अपील में 6 साल की बच्ची की गवाही को अविश्वसनीय और देर से बयान दर्ज करने को मुद्दा बनाया गया था।
हाईकोर्ट की डबल बेंच में हुई सुनवाई
जस्टिस रजनी दुबे और जस्टिस सचिन सिंह राजपूत की डीबी ने सुनवाई के बाद अपने आदेश में कहा कि, इस घटना की महत्वपूर्ण गवाह अभियुक्त और मृतक की 6 वर्षीय बेटी है। प्रारंभिक प्रश्न पूछकर, निचली अदालत ने साक्ष्य देने की अपनी क्षमता के बारे में खुद को संतुष्ट किया और फिर उसे दर्ज किया। उसने कहा है कि घटना की तारीख को अभियुक्त पंकू ने उसके पिता के पेट पर हमला किया था।
कोर्ट ने आरोपियों की अपील खारिज
उसके अनुसार, मृतक की पत्नी जो उस समय चूल्हे के सामने खुद बैठी थी, उसके ही दुपट्टे से उनका गला घोंट दिया था। उसके बाद पिता को देवता कक्ष में ले जाकर उन्हें बीच वाले बीम से लटका दिया गया। हाईकोर्ट की डीबी ने कहा कि, बाल गवाह – जिसने घटना को अपनी आँखों से देखा है, उसको किसी पुष्टिकरण की आवश्यकता नहीं है। कोर्ट ने आरोपियों की अपील खारिज कर दी। डिवीजन बेंच ने आरोपियों को विधिक सेवा प्राधिकरण समिति की मदद से सुप्रीम कोर्ट में अपील करने की छूट जरूर दी है।