03 मई 2025 :
Uddhav Thackeray Shiv Sena UBT on PM Modi: जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद पूरा देश सदमे और शोक में डूबा हुआ है. वहीं महाराष्ट्र की राजनीति में अलग ही हलचल मची हुई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मुंबई में एक मनोरंजन कार्यक्रम में शिरकत करने पर उद्धव ठाकरे की पार्टी शिवसेना (UBT) के मुखपत्र सामना ने तीखा प्रहार किया है.
संपादकीय में इस बात को लेकर गंभीर सवाल उठाए गए हैं कि जब देश में 26 निर्दोष नागरिकों की निर्मम हत्या हुई हो, तब क्या मनोरंजन कार्यक्रमों में शामिल होना उचित था?
PM मोदी का ‘वेव्स’ समिट में भाग लेना असंवेदनशील- सामना
सामना के अनुसार, “देश अभी पहलगाम की घटना के दुख से उबर नहीं पाया है. ऐसे समय में मुंबई में ‘वेव्स’ समिट जैसे चमकदार कार्यक्रम में प्रधानमंत्री का भाग लेना न केवल असंवेदनशीलता दर्शाता है, बल्कि यह पीड़ितों और उनके परिवारों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है.” संपादकीय में यह भी लिखा गया कि मुंबईकरों द्वारा आतंकवादी हमले में मारे गए लोगों को श्रद्धांजलि देने के लिए जो पोस्टर लगाए गए थे, वे चमचमाते प्रधानमंत्री के स्वागत पोस्टरों के आगे फीके पड़ गए.
पहलगाम की घटना पर नहीं रोए PM- सामना
सामना ने तंज कसते हुए कहा कि प्रधानमंत्री मोदी को अक्सर मंच पर भावुक होते हुए और कैमरे के सामने रोते देखा गया है, लेकिन पुलवामा और अब पहलगाम की घटनाओं के बाद उनकी आंखें नम नहीं हुईं. संपादकीय ने पूछा कि क्या यह संवेदनशीलता सिर्फ एक अभिनय मात्र है?
प्रधानमंत्री के भाषण में उन्होंने कहा, “हम इंसानों को यंत्र नहीं बनने देना चाहते, बल्कि उन्हें संवेदनशील बनाना चाहते हैं.” इस पर सामना ने पलटवार करते हुए लिखा, “जब 26 निर्दोष लोगों की लाशें पड़ी हों और देश रो रहा हो, तब भी यदि नेता मुस्कुराते मंच पर हों, तो यह संवेदनशीलता कहां है?” संपादकीय में यह भी कहा गया कि जब कोई नेता या प्रमुख हस्ती विदेश में निधन को प्राप्त होती है, तो भारत में राष्ट्रीय शोक घोषित किया जाता है, कार्यक्रम रद्द किए जाते हैं. लेकिन यहां 26 भारतीय नागरिकों की हत्या के बाद भी किसी प्रकार की संवेदनशीलता नहीं दिखाई गई.
‘क्रिएट इन इंडिया, क्रिएट फॉर वर्ल्ड’ पर सवाल
प्रधानमंत्री मोदी द्वारा ‘क्रिएट इन इंडिया, क्रिएट फॉर वर्ल्ड’ की बात पर सवाल उठाते हुए सामना में कहा गया कि भारतीय सिनेमा, संगीत, कहानियां राष्ट्रीय एकता और भारतीय संस्कृति के महान प्रतीक हैं. मनोज कुमार जैसे कलाकारों ने हमेशा अखंड भारत की कहानी को पर्दे पर उतारा. भारतीय मनोरंजन क्षेत्र ने भारत की हर गली के प्रेम की कहानी को पर्दे पर लाने का प्रयास किया है. हालांकि, अब इन प्रेम कहानियों पर प्रतिबंध लग गए हैं. ऑडियो-विजुअल माध्यमों का गला घोंटने का काम चल रहा है. ऐसे में क्या ‘क्रिएट इन इंडिया, क्रिएट फॉर वर्ल्ड’ का सपना सच में साकार हो जाएगा?
सामना का संपादकीय “यंत्र का भाषण, यंत्रों ने सुना!” शीर्षक से छपा. जिसमें इस पूरे घटनाक्रम की कटु आलोचना करते हुए कहा गया कि संवेदनशीलता की बातें सिर्फ मंच तक सीमित हैं, जबकि जमीनी हकीकत में देश और जनता की भावनाएं दरकिनार की जा रही हैं.