रायपुर।
छत्तीसगढ़ के माओवाद प्रभावित नारायणपुर और अबूझमाड़ इलाके में तेजी से फैल रहे धार्मिक मतांतरण और मानव तस्करी को लेकर अबूझमाड़िया जनजाति ने खुलकर विरोध शुरू कर दिया है। अबूझमाड़िया समाज का कहना है कि अगर जल्द कार्रवाई नहीं हुई, तो वह अपने अस्तित्व की लड़ाई के लिए सड़कों पर उतरने को मजबूर होगा।
मिशनरियों पर गंभीर आरोप, राष्ट्रपति से लगाई गुहार
अबूझमाड़िया समाज कल्याण एवं विकास समिति ने राष्ट्रपति, राज्यपाल और मुख्यमंत्री को ज्ञापन भेजते हुए मांग की है कि उन्हें मतांतरण के कुचक्र से बाहर निकाला जाए। समाज का आरोप है कि क्षेत्र में मिशनरी संगठनों का नेटवर्क तेजी से फैल रहा है और भोले-भाले आदिवासियों को नौकरी, पैसा और सुविधाओं का लालच देकर उनका धर्म परिवर्तन कराया जा रहा है।
नारायणपुर में हुई बैठक, जनजागरण की रणनीति
सोमवार को नारायणपुर में हुई समाज की अहम बैठक में इस मुद्दे पर गहरी चिंता जताई गई। बैठक में निर्णय लिया गया कि समाज अब गांव-गांव जाकर जनजागरूकता अभियान चलाएगा। यदि प्रशासन ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया तो सामूहिक प्रदर्शन और सड़क आंदोलन किया जाएगा।
दुर्ग स्टेशन पर मानव तस्करी का खुलासा
कुछ ही दिन पहले दुर्ग रेलवे स्टेशन पर बड़ा खुलासा हुआ था, जब रेलवे पुलिस ने तीन आदिवासी युवतियों को मानव तस्करी के आरोप में पकड़ा, जिन्हें उत्तर प्रदेश के आगरा ले जाया जा रहा था। पुलिस ने इस मामले में एक एजेंट सुखमन मंडावी और दो ननों को भी गिरफ्तार किया था। यह घटना अबूझमाड़िया समाज के लिए एक चेतावनी बनकर सामने आई है।
“अबूझमाड़िया संस्कृति को खतरा”
नारायणपुर जिले के अबूझमाड़िया समाज अध्यक्ष रामजी राम ध्रुव और जनपद उपाध्यक्ष मंगडूराम नुरटी ने कहा कि,
“हमारी जनजाति की संस्कृति बहुत ही अनोखी है। यह केवल अबूझमाड़ क्षेत्र में निवास करती है और राष्ट्रपति की दत्तक जनजाति मानी जाती है। मतांतरण की वजह से हमारी परंपराएं और सांस्कृतिक पहचान खतरे में पड़ गई है।”
हिंदू संगठनों का भी विरोध तेज
हिंदू संगठनों ने भी इस मामले में कड़ा विरोध जताते हुए धार्मिक साहित्य वितरण और बाइबल बांटने जैसी गतिविधियों की निंदा की है। उन्होंने सरकार से मांग की है कि इन घटनाओं की गहन जांच हो और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए।
“अगर प्रशासन अब भी चुप बैठा रहा, तो आने वाले समय में यह समाज की अस्तित्व की लड़ाई बन जाएगी।”