वंदे मातरम् विवाद एक बार फिर सुर्खियों में है, और इस बार बहस का केंद्र धार्मिक व्याख्याओं का अंतर बन गया है। जहां सुन्नी धर्मगुरु मौलाना अरशद मदनी इसे शिर्क मानते हुए साफ विरोध में खड़े दिखे, वहीं शिया धर्मगुरु मौलाना यासूब अब्बास ने इसे देशभक्ति से जुड़ा भाव बताते हुए अलग मत रखा। इससे Vande Mataram Debate और गहराते हुए नए सवाल खड़े कर रही है।
“वतन से मोहब्बत और पूजा में फर्क है”—सुन्नी पक्ष की दलीलें
अरशद मदनी का तर्क है कि वंदे मातरम् की मूल रचना के कुछ श्लोक देश को देवत्व प्रदान करते नजर आते हैं, और यह मुसलमानों की आस्था के विपरीत है। उनका कहना है कि मुसलमान केवल एक ईश्वर की इबादत करता है, इसलिए किसी भी तरह के पूज्यभाव को स्वीकार नहीं कर सकता।
उन्होंने जोर देकर कहा कि “वतन से प्रेम करना अलग बात है, लेकिन पूजा करना धार्मिक रूप से स्वीकार्य नहीं।”
उनके अनुसार, प्रदर्शन या सार्वजनिक कार्यक्रमों में ऐसी चीज़ों को लेकर किसी पर दबाव नहीं डाला जाना चाहिए, क्योंकि संविधान धार्मिक स्वतंत्रता देता है।
शिया पक्ष का पलटवार—“मातृभूमि को सलाम इबादत नहीं, सम्मान है”
शिया धर्मगुरु मौलाना यासूब अब्बास ने सुन्नी पक्ष की सोच से अलग दृष्टिकोण पेश किया। उनका कहना है कि वंदे मातरम् किसी देवता की पूजा नहीं, बल्कि मातृभूमि को सलाम करने जैसा भाव है, जो इस्लामी सिद्धांतों से टकराता नहीं।
उन्होंने यह भी कहा कि वंदे मातरम् का शुद्ध उर्दू अनुवाद सामने आना चाहिए, ताकि समुदाय इसे सही अर्थों में समझ सके।
शिया बोर्ड ने इस विवाद को “अनावश्यक धार्मिक ध्रुवीकरण” बताते हुए कहा कि देश पहले, धर्म के ऊपर नहीं। उन्होंने कुछ कट्टरपंथी सोच को “तालिबानी मानसिकता” तक कहा।
पुरानी यादें, नए सवाल—संसद की बहस में उठा ऐतिहासिक जिक्र
बहस के बीच संसद में एक सांसद ने ऐतिहासिक घटनाएं उठाईं, जहां बंगाल में मस्जिदों के बाहर निकलते जुलूसों के सामने वंदे मातरम् के नारे लगाए जाते थे, जिससे उस दौर में टकराव पैदा हुआ।
यह तर्क आज भी प्रासंगिक है कि क्या ऐतिहासिक परिस्थितियां वर्तमान संदर्भों को प्रभावित करती हैं या बहस सिर्फ राजनीति का हिस्सा बनकर रह गई है।
“तुष्टीकरण से शुरू हुआ विवाद”—राजनीतिक प्रतिक्रिया ने गर्माया माहौल
वंदे मातरम् विवाद पर राजनीतिक प्रतिक्रिया भी सामने आई। एक केंद्रीय मंत्री ने इस पूरे प्रकरण को “तुष्टीकरण की राजनीति की शुरुआत” बताया। उनका कहना था कि गीत और उससे जुड़ा साहित्य किसी धर्म को लक्ष्य नहीं करता, बल्कि राष्ट्रीय भावना (National Sentiment) को मजबूत करता है।
उनके अनुसार, देश की संस्थाओं को कमजोर करने वाले बयान और प्रतिक्रियाएं ही विवादों को लंबा खींचते हैं।


