सीजी भास्कर, 31 जुलाई |
रायपुर। छत्तीसगढ़ में इन दिनों धर्मांतरण को लेकर सामाजिक और राजनीतिक टकराव की स्थिति बन गई है। कांकेर में एक शव के दफन को लेकर बवाल हुआ तो दुर्ग में मिशनरी सिस्टर्स की गिरफ्तारी के बाद मामला संसद तक पहुंच गया। पर क्या आपने कभी सोचा है कि छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्म की शुरुआत कैसे हुई? पहले चर्च कहां बना? और कैसे 4 लोगों से शुरू होकर यह जनसंख्या 6 लाख के पार पहुंच गई?
इस लेख में हम आपको छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्म के 157 साल पुराने इतिहास से लेकर आज के हालात तक की पूरी कहानी विस्तार से बताएंगे।
धर्मांतरण विवाद: कांकेर और दुर्ग दो हॉटस्पॉट
बीते कुछ दिनों में दो बड़े घटनाक्रमों ने राज्य की सामाजिक और राजनीतिक सरगर्मी बढ़ा दी है:
- 25 जुलाई को दुर्ग में दो नन को कथित जबरन धर्मांतरण के मामले में गिरफ्तार किया गया। इसके विरोध में दिल्ली से सांसदों का प्रतिनिधिमंडल दुर्ग जेल पहुंचा और राज्य सरकार पर “फर्जी केस में फंसाकर जेल में डालने” का आरोप लगाया।
- 28 जुलाई को कांकेर में एक ईसाई व्यक्ति की मौत के बाद जब शव को दफनाया जा रहा था, तब करीब 500 से 1000 लोगों की भीड़ ने चर्च और घरों में जमकर तोड़फोड़ की। शव को कब्र से निकालना पड़ा। मृतक के बड़े भाई ने हत्या कर शव दफनाने का आरोप लगाया है।
इन घटनाओं ने छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण बनाम धार्मिक स्वतंत्रता की बहस को फिर से गर्म कर दिया है।
छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्म की नींव: 1868 में बना था पहला चर्च
छत्तीसगढ़ में ईसाई धर्म की शुरुआत 1868 में एक जर्मन मिशनरी द्वारा की गई थी। उनका नाम था जॉन हेरमन श्नाइडर। उन्होंने सरगुजा संभाग के विश्रामपुर (City of Rest) में पहला चर्च और पहला कब्रिस्तान बनवाया था।
शुरुआत में सिर्फ 4 स्थानीय लोगों ने ईसाई धर्म स्वीकार किया था, लेकिन समय के साथ यह संख्या तेजी से बढ़ी। श्नाइडर को अपनी धार्मिक सेवा में इतने गहरे उतरना पड़ा कि उन्होंने अपने बड़े बेटे को भी धर्म प्रचार के दौरान खो दिया।
जशपुर: एशिया का दूसरा सबसे बड़ा कैथेड्रल चर्च
- छत्तीसगढ़ में ईसाई समुदाय का सबसे बड़ा धार्मिक स्थल जशपुर के कुनकुरी में है। यहां स्थित है —
“Cathedral of Our Lady of the Rosary”, जो एशिया का दूसरा सबसे बड़ा रोमन कैथोलिक चर्च है।
इसका निर्माण 1979 में हुआ था और यह 10,000 से ज्यादा लोगों को एक साथ समेटने की क्षमता रखता है।
यह चर्च ना केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि राज्यभर में धर्मप्रचार और मसीही गतिविधियों का भी मुख्य केंद्र बन चुका है।
जनगणना 2011 के आंकड़े और वर्तमान स्थिति
- 2011 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ की कुल जनसंख्या थी: 2.55 करोड़
- हिंदू – 93.25%
- मुस्लिम – 2.02%
- ईसाई – 1.92%
- अन्य धर्म – 2.81% (बौद्ध, सिख, जैन आदि)
- उस समय ईसाई जनसंख्या थी – 4.9 लाख
- अनुमान के मुताबिक 2024 तक छत्तीसगढ़ में ईसाई आबादी 6 लाख के पार हो चुकी है।
- राज्य में फिलहाल 900 से अधिक चर्च सक्रिय हैं। इनमें से कई छोटे-बड़े चर्च ग्रामीण इलाकों में फैले हुए हैं।
कौन-कौन धर्मांतरित हुआ?
- ईसाई धर्म में परिवर्तित होने वालों में जनजातीय समुदाय (खासकर सरगुजा, जशपुर, बस्तर) के लोग सबसे ज्यादा हैं।
- इनमें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और रोजगार के वादे के साथ धर्म परिवर्तन किया गया — ऐसा कई सामाजिक संगठनों का दावा है।
- हालांकि मिशनरियों का पक्ष है कि यह “स्वेच्छा से हुआ परिवर्तन” है, न कि कोई जबरदस्ती।
राजनीति और संवेदनशीलता के बीच फंसा धर्म परिवर्तन
राज्य में धर्मांतरण अब केवल सामाजिक मुद्दा नहीं रहा — यह राजनीति और पहचान का सवाल बन चुका है।
जहां एक तरफ BJP जैसे दल धर्मांतरण को “सांस्कृतिक हमला” मानते हैं, वहीं कांग्रेस और सेक्युलर पार्टियां इसे “धार्मिक स्वतंत्रता” का मुद्दा बताती हैं।