दिल्ली , 08 अप्रैल 2025 :
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक दिल दहला देने वाले मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा है कि जहां एक प्रताड़ित महिला आत्महत्या के लिए मजबूर होती है, उस जगह की अहमियत नहीं, बल्कि उसे प्रताड़ित करने वाले रिश्ते की अहमियत होती है. दिल्ली हाई कोर्ट में जस्टिस गिरीश काथपालिया की अदालत में पेश हुआ यह मामला एक ऐसी महिला की आत्महत्या से जुड़ा था, जिसने अपने मायके में फांसी लगाकर जान दे दी. आरोपी पति ने अदालत में यह तर्क दिया कि चूंकि आत्महत्या मायके में हुई, और उस दौरान कोई दहेज मांग या प्रताड़ना का साक्ष्य नहीं मिला, इसलिए उस पर दहेज हत्या का आरोप नहीं बनता.
दिल्ली HC ने कही अहम बातें
दिल्ली हाई कोर्ट में पति ने दलील दी कि महिला की आत्महत्या मायके में हुई और उस दौरान कोई दहेज मांग या प्रताड़ना का साक्ष्य नहीं मिला, इसलिए उस पर दहेज हत्या का आरोप नहीं बनता. लेकिन अदालत ने इस दलील को सिरे से खारिज कर दिया. जस्टिस गिरीश काथपालिया ने कहा दहेज की आग केवल ससुराल तक सीमित नहीं रहती. अगर किसी महिला को शादीशुदा जिंदगी में बार-बार प्रताड़ित किया गया हो, तो वह आग उसके मायके तक पीछा करती है और उसे आत्महत्या के लिए मजबूर कर सकती है.
दिल्ली HC ने कानूनी व्याख्या में दिया नया संदेश
कोर्ट ने IPC की धारा 304B की व्याख्या करते हुए कहा कि मृत्यु से ठीक पहले (soon before death) का मतलब यह नहीं कि अंतिम क्षणों में ही प्रताड़ना होनी चाहिए. यह एक सतत प्रक्रिया हो सकती है, जो महिला के जीवन पर इतना गहरा प्रभाव डालती है कि वह मौत को गले लगा लेती है.
जमानत याचिका हुई खारिज
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा आरोपी पति की जमानत याचिका खारिज कर दी. अदालत ने यह स्पष्ट कर दिया कि केवल स्थान बदलने से ज़िम्मेदारी नहीं बदलती. एक पत्नी के टूटते हौसले, घुटती सांसें और अंततः उठाया गया खौफनाक कदम ये सब दहेज प्रताड़ना के ही पड़ाव हैं.