सीजी भास्कर 3 जून: आज के समय में भारत में डायबिटीज और ब्लड प्रेशर के केस बढ़ते जा रहे हैं. स्टडी के मुताबिक, लांसेट की साल 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 101 मिलियन लोग – देश की आबादी का 11.4% – डायबिटीज के साथ जी रहे हैं. WHO के मुताबिक, भारत में बल्ड प्रेशर से के लगभग 220 मिलियन लोग पेशेंट हैं. जहां यह आंकड़ें चौंका देते हैं, वहीं दूसरी तरफ एक रिपोर्ट सामने आई है जो बताती है कि ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं में डायबिटीज और ब्लड प्रेशर के लिए दवाओं की गंभीर कमी है. इन ग्रामीण हेल्थकेयर फेसेलिटी में बल्ड प्रेशर और डायबिटीज की दवा कम पाई गई है.
आईसीएमआर (ICMR) और डब्ल्यूएचओ (WHO) ने बाकी और संस्थानों के साथ मिलकर एक सर्वे किया. इस सर्वे में सात राज्यों के 19 जिलों में सब-सेंटर से लेकर उप-जिला अस्पतालों तक ग्रामीण स्वास्थ्य सुविधाओं में डायबिटीज और बल्ड प्रेशर के लिए दवाओं की गंभीर कमी है इस बात का पता चला है. एक सब सेंटर प्राइमरी हेल्थ केयर का सबसे बेसिक लेवल है, यहां पर बुनियादी स्तर का इलाज मिल जाता है, इसे मातृ, शिशु और सामुदायिक स्वास्थ्य जरूरतों के लिए अहम माना जाता है.
स्टडी में क्या सामने आया?
स्टडी में पाया गया है कि सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (सीएचसी) स्तर पर विशेषज्ञों की कमी भी पाई गई है. साथ ही साल 2020-21 की ग्रामीण स्वास्थ्य सांख्यिकी रिपोर्ट को देखें तो तब भी यह ही पाया गया था कि सीएचसी स्तर पर फिजिशियन (82.2 प्रतिशत) और सर्जनों (83.2.9 प्रतिशत) की कमी का संकेत मिलता है.
इंडियन जर्नल ऑफ मेडिकल रिसर्च (आईजेएमआर)” में पब्लिश की गई रिपोर्ट के मुताबिक, पब्लिक हेल्थ फेसेलिटी के बीच, भारत में पीएचसी जिला अस्पताल और सरकारी मेडिकल कॉलेज में डायबिटीज और बीपी के लिए सेवाओं को मैनेज करने के लिए बेहतर तरीके से तैयार हैं. सात राज्यों के 19 जिलों में स्वास्थ्य सुविधाओं का एक क्रॉस-सेक्शनल सर्वे किया गया, जिसमें पब्लिक और प्राइवेट दोनों स्वास्थ्य सुविधाओं का मूल्यांकन किया गया. इस सर्वे में दो फेज में डाटा इकट्ठा किया गया. 415 हेल्थ फेसेलिटी को कवर किया गया. जिनमें से 75.7 प्रतिशत पब्लिक और 24 प्रतिशत निजी थे.
डायबिटीज और बल्ड प्रेशर की दवाओं की कमी
रिपोर्ट के मुताबिक, सर्वे में सूचना दी गई कि ज्यादातर पब्लिक हेल्थ फेसेलिटी में डायबिटीज और बल्ड प्रेशर के लिए जरूरी दवाओं का स्टॉक खत्म था. अध्ययन में कहा गया है, मूल्यांकन किए गए 105 सब-सेंटर अस्पतालों में लगभग एक तिहाई 35.2 प्रतिशत ने टैबलेट मेटफॉर्मिन के स्टॉकआउट की सूचना दी और लगभग आधे से भी कम 44.8 प्रतिशत ने टैबलेट एम्लोडिपिन के स्टॉकआउट की सूचना दी. दवाओं के स्टॉकआउट की औसत पीरियड एक से सात महीने तक थी.
सब-सेंटर अस्पतालों में कैसा हाल?
सब-सेंटर अस्पतालों ने किसी भी दूसरी दवाओं से ज्यादा तुलना में बल्ड प्रेशर और डायबिटीज की दवाओं की कमी की जानकारी दी. जोकि ग्रामीण इलाकों के लिए चिंता का विषय है. हालांकि, ये दवाएं सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं (Public health care facility) की तुलना में सरकारी मेडिकल कॉलेजों में बेहतर उपलब्ध थीं. प्राइमरी हेल्थ सेंटर(पीएचसी) में दवा उपलब्धता स्कोर सिर्फ 66 प्रतिशत था, जोकि 100 प्रतिशत होना चाहिए था.
रिपोर्ट में कहा गया है, रिपोर्ट बताती है कि भारत में पब्लिक हेल्थकेयर फेसेलिटी, जिला अस्पताल और सरकारी मेडिकल कॉलेज की तुलना करें तो सबसे ज्यादा डायबिटीज और बल्ड प्रेशर की दवा का बेहतर इंतजाम मेडिकल कॉलेज में है. साथ ही यह भी बताया गया है कि सभी सुविधाओं में, उपकरणों के लिए स्कोर ज्यादा था, इसका मतलब है कि अस्पतालों में उपकरण तो मौजूद हैं लेकिन जहां दवाओं की बात आती है तो यह स्कोर काफी कम दिया गया क्योंकि दवाएं 100 प्रतिशत उपलब्ध नहीं है.