सीजी भास्कर, 23 जून। बिल्डर की ओर से तर्क दिया गया कि फ्लैट तैयार था और ज्यादातर खरीदार पहले ही उसमें रहने लग गए थे।उन्होंने यह भी दावा किया कि शिकायतकर्ताओं ने भुगतान में देरी की और समझौते की कई शर्तों का उल्लंघन किया।बिल्डर ने यह भी कहा कि सेवा कर कानूनी रूप से देय था।
राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग The National Consumer Disputes Redressal Commission (NCDRC) ने बिल्डर्स को सेवा में कमी के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि वे उपभोक्ता मामलों में, रिफंड ही नहीं ब्याज के साथ मुआवजा देने के लिए बाध्य हैं।
जस्टिस सुदीप अहलूवालिया और साधना शंकर की आयोग की बेंच एक बिल्डर द्वारा राज्य आयोग के आदेशों के खिलाफ दाखिल की गई अपील पर सुनवाई कर रही थी, जिस पर यह फैसला सुनाया।
राज्य आयोग ने अपनी जांच में बिल्डर की सेवा के मामले में कई खामियां पाई थी और शिकायतकर्ता को 12 फीसदी ब्याज के साथ 34,27,747 रुपये, मुआवजे के रूप में 1 लाख रुपये और मुकदमेबाजी लागत के रूप में 11,000 रुपये भुगतान करने का निर्देश दिया था।
क्या था मामला
16 जून को, राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने कानूनी मिसालों के आधार पर राज्य आयोग के आदेश को संशोधित किया। राज्य आयोग ने 1 लाख रुपये के मुआवजे को अलग रखा, लेकिन मुकदमेबाजी की लागत 11,000 रुपये से बढ़ाकर 40,000 रुपये कर दिया था।
मामला साल 2011 का है, जब शिकायतकर्ताओं ने चंडीगढ़-अंबाला हाईवे पर बरनाला बिल्डर्स द्वारा एक प्रोजेक्ट में एक फ्लैट बुक कराया था, जिसके बारे में विज्ञापन के जरिए यह दावा किया गया था कि यह पूरी तरह से तैयार है और इसमें किसी तरह का कोई कानूनी मसला भी नहीं हैं। उन्होंने फ्लैट की कुल कीमत का एक बड़े हिस्से का भुगतान भी कर दिया।
बिल्डर ने दी पैसा जब्त करने की धमकी
लेकिन बिल्डर ने पहले खरीदार का एग्रीमेंट पेपर नहीं दिया। बाद में, बिल्डर ने शिकायतकर्ता के साथ कई अप्रत्याशित और अनुचित तरह की शर्तों के साथ एक एग्रीमेंट किया।
शिकायतकर्ताओं को बिना किसी उचित स्पष्टीकरण के कई मनमाने सेवा कर (service tax) की मांग भी मिली। 34 लाख रुपये से अधिक का भुगतान करने के बावजूद, उन्हें केवल एक कागजी कब्जा पत्र (possession letter) थमा दिया गया।
जबकि एक्चुअल डेवलपमेंट (actual development), यूटिलिटी कनेक्शनंस (utility connections) और स्टैचुअर सर्टिफिकेट (statutory certificates) अभी भी नहीं दिए गए थे।
शिकायतकर्ताओं ने जब अपना रिफंड मांगा, तो बिल्डर ने इसे जब्त करने की धमकी दे डाली। इसके बाद उन्होंने 2014 में पंजाब के राज्य आयोग के समक्ष शिकायत भी दर्ज कराई।
2016 में आयोग ने माना कि बिल्डर ने अपने सेवा में लापरवाही बरती है और 12 फीसदी ब्याज के साथ 34,27,747 रुपये, मुआवजे के रूप में 1 लाख रुपये और केस की लागत के रूप में 11,000 रुपये के साथ वापस करने का आदेश दिया। इससे व्यथित होकर बिल्डर ने राष्ट्रीय आयोग के समक्ष अपील दायर की।
बिल्डर की ओर से क्या कहा गया
बिल्डर की ओर से तर्क दिया गया कि फ्लैट तैयार था और ज्यादातर खरीदार पहले ही उसमें रहने लग गए थे। उन्होंने यह भी दावा किया कि शिकायतकर्ताओं ने भुगतान में देरी की और समझौते की कई शर्तों का उल्लंघन किया।
बिल्डर ने यह भी कहा कि सेवा कर कानूनी रूप से देय था और शिकायतकर्ताओं ने पहले कैलकुलेशन को चुनौती नहीं दी थी। उन्होंने देरी के लिए शुल्क और ब्याज लगाने के अपने अधिकार का समर्थन करने के लिए पहले के फैसलों का हवाला दिया।
मामला जब राष्ट्रीय आयोग में आया तो उसने इस बात की पुष्टि की कि उपभोक्ता मामलों में ब्याज देना और रिफंड देना एक प्रकार का मुआवजा है।