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Home » एक सदी में 1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ा तापमान… हिमाचल ऐसे ही नहीं झेल रहा कुदरती तबाही, ऐसे ही नहीं टूट रहे पहाड़

एक सदी में 1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ा तापमान… हिमाचल ऐसे ही नहीं झेल रहा कुदरती तबाही, ऐसे ही नहीं टूट रहे पहाड़

By Newsdesk Admin 01/07/2025
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हिमाचल प्रदेश, जो अपनी प्राकृतिक सुंदरता के लिए जाना जाता है, पिछले कुछ सालों में बार-बार प्राकृतिक आपदाओं का शिकार हो रहा है. भूस्खलन, बादल फटने, बाढ़ और अचानक आई बाढ़ (फ्लैश फ्लड) जैसी घटनाएं अब आम हो गई हैं. इन आपदाओं ने न केवल जान-माल का नुकसान किया है, बल्कि हिमाचल की अर्थव्यवस्था और पर्यटन पर भी गहरा असर डाला है. आखिर हिमाचल में इतने खराब मौसम और आपदाओं की वजह क्या है?

वैज्ञानिक कारण

1. जलवायु परिवर्तन (Climate Change)

जलवायु परिवर्तन हिमाचल में बढ़ती आपदाओं का सबसे बड़ा कारण है. वैज्ञानिकों के अनुसार, हिमाचल में पिछले एक सदी में औसत तापमान 1.6 डिग्री सेल्सियस बढ़ गया है. इससे मौसम के पैटर्न में बदलाव आया है. बारिश की तीव्रता और आवृत्ति बढ़ गई है.

बादल फटने की घटनाएं: बादल फटना (Cloudburst) तब होता है जब बहुत कम समय में किसी छोटे क्षेत्र में भारी बारिश होती है. भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, अगर 20-30 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में एक घंटे में 100 मिमी से ज्यादा बारिश हो, तो उसे बादल फटना कहते हैं. हिमाचल में 2024 के मानसून में 18 बादल फटने की घटनाएं दर्ज की गईं. ग्लोबल वार्मिंग के कारण वायुमंडल में नमी की मात्रा बढ़ गई है, जिससे भारी बारिश और बादल फटने की घटनाएं ज्यादा हो रही हैं.

अनियमित बारिश: हिमाचल में बारिश का पैटर्न बदल गया है. पहले मानसून में बारिश एकसमान होती थी, लेकिन अब कम समय में ज्यादा बारिश होने लगी है. उदाहरण के लिए, 2023 में कुल्लू जिले में सामान्य से 180% ज्यादा बारिश हुई, जिससे बाढ़ और भूस्खलन की घटनाएं बढ़ गईं.

पश्चिमी विक्षोभ का प्रभाव: हिमाचल में मानसून के साथ-साथ पश्चिमी विक्षोभ (Western Disturbances) भी भारी बारिश का कारण बनते हैं. 2023 में 7-10 जुलाई को पश्चिमी विक्षोभ और मानसून के मिलने से भारी बारिश हुई, जिसने कुल्लू, मंडी और शिमला जैसे जिलों में तबाही मचाई.

2. हिमालय की भौगोलिक संरचना

हिमाचल प्रदेश हिमालय के पश्चिमी हिस्से में स्थित है, जो दुनिया का सबसे युवा पर्वत श्रृंखला है. यह भौगोलिक रूप से अस्थिर और भूकंप के लिए संवेदनशील क्षेत्र है.

भूकंपीय जोखिम: हिमाचल के पांच जिले (चंबा, हमीरपुर, कांगड़ा, कुल्लू, मंडी) भूकंप के लिए अति संवेदनशील क्षेत्र (जोन IV और V) में आते हैं. भूकंप और लगातार बारिश से पहाड़ कमजोर हो जाते हैं, जिससे भूस्खलन की घटनाएं बढ़ती हैं.

मिट्टी का कटाव: हिमाचल में लगभग 58.36% भूमि तीव्र मिट्टी कटाव (Soil Erosion) के खतरे में है. भारी बारिश के कारण मिट्टी बह जाती है, जिससे पहाड़ों की स्थिरता कम होती है. भूस्खलन का खतरा बढ़ता है.

पहाड़ों की ढलान: हिमाचल के पहाड़ों की ढलान और ऊंचाई बारिश के पानी को तेजी से नीचे की ओर ले जाती है, जिससे फ्लैश फ्लड की घटनाएं बढ़ती हैं. पिर पंजाल रेंज जैसे क्षेत्रों में मानसून की हवाएं रुकती हैं, जिससे भारी बारिश और बादल फटने की स्थिति बनती है.

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