सीजी भास्कर, 26 जुलाई। बिहार में पूर्णिया जिला निवासी 21 वर्षीय युवक पांच वर्ष से पुरानी खांसी, बलगम व खूनी खांसी से परेशान था। स्थिति बिगड़ने पर डाक्टरों ने बाएं फेफड़े में एक पुरानी बीमारी बताकर उपचार शुरू किया, लेकिन सुधार नहीं हुआ। सीने में दर्द, बलगम व खांसी की शिकायत बने रहने पर वह जुलाई 2025 में इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान संस्थान में पहुंचा। विभागाध्यक्ष डा. मनीष शंकर ने जांच में पाया कि श्वास नली में प्लास्टिक पेन की कैप (ढक्कन) फंसी हुई है। इसके बाद डा. मनीष ने अपनी टीम के साथ ब्रोंकोस्कोपी की मदद से एक घंटे की जटिल प्रक्रिया कर पेन की कैप बाहर निकाली।
युवक ने बताया कि 2020 में जब वह मुंह में पेन की कैप रखे हुए था तो उसका ऊपरी हिस्सा निगल गया था। उस समय लगा कि वह मल के साथ निकल गई होगी। कुछ माह बाद उसे खांसी, सीने में दर्द व सांस फूलने जैसी समस्या होने लगी। इसके बाद खांसी, बलगम व खूनी खांसी का जो दौर शुरू हुआ, वह अभी तक जारी था। उसने टीबी की आशंका पर कई बार एक्स-रे व अन्य जांचें कराईं पर डाक्टर समझ नहीं पाए और दवाएं देते रहे। दवाओं से तात्कालिक लाभ होता था लेकिन फिर खांसी शुरू हो जाती थी। डा. मनीष शंकर ने बताया कि पांच वर्ष में पेन की कैप ने फेफड़ों को काफी हद तक नुकसान पहुंचाया है।