सीजी भास्कर 1 अगस्त
तमिलनाडु की राजनीतिक जमीन एक बार फिर गर्मा गई है। राज्य के वरिष्ठ नेता और AIADMK के पूर्व कद्दावर चेहरा ओ. पन्नीरसेल्वम (OPS) ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) से रिश्ता तोड़ने की आधिकारिक घोषणा कर दी है।
बीजेपी पहले ही तमिलनाडु में सियासी रूप से संघर्षरत थी, और ऐसे में OPS का गठबंधन तोड़ना एक बड़ा झटका माना जा रहा है।
गठबंधन टूटने की वजह क्या रही?
पन्नीरसेल्वम ने पार्टी नेताओं और अपने सलाहकार पनरुती एस. रामचंद्रन के साथ करीब तीन घंटे लंबी मीटिंग के बाद यह निर्णय लिया। सूत्रों के मुताबिक OPS प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मुलाकात करना चाहते थे, लेकिन समय न मिलने से वह नाराज थे। उन्होंने खुद पीएम मोदी को पत्र भी लिखा था।
गुरुवार सुबह पन्नीरसेल्वम की तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन से मॉर्निंग वॉक के दौरान अचानक मुलाकात हुई, जिसके कुछ ही घंटों बाद उन्होंने बीजेपी से दूरी बना ली।
इतिहास दोहराया गया? जयललिता की याद दिला दी
26 साल पहले 1999 में, जयललिता ने भी ठीक ऐसे ही बीजेपी से रिश्ता तोड़कर वाजपेयी सरकार गिरा दी थी। होटल अशोका में सोनिया गांधी के साथ चाय पार्टी हुई थी, और वहीं से सरकार गिराने की पटकथा लिखी गई थी।
OPS को आज कई लोग जयललिता का राजनीतिक उत्तराधिकारी मानते हैं। अब एक बार फिर तमिलनाडु में बीजेपी का गठबंधन दरक गया है।
क्या है राजनीतिक असर?
ओपीएस का यह कदम बीजेपी की रणनीति को गहरा नुकसान पहुंचा सकता है। OPS का आधार क्षेत्र थेवर समुदाय है, जिसकी आबादी तमिलनाडु में 10–12% है। यह वोटबैंक दक्षिण तमिलनाडु में निर्णायक भूमिका निभाता है।
अगर OPS ने अलग पार्टी बनाकर चुनाव लड़ा, तो AIADMK के वोट बंटेंगे। और अगर उन्होंने DMK से गठबंधन किया, तो बीजेपी को राज्य में लगभग बाहर का रास्ता दिख सकता है।
आगे की योजना: OPS अकेले करेंगे चुनावी यात्रा?
ओपीएस ने संकेत दिए हैं कि वे 2026 चुनाव से पहले पूरे राज्य की यात्रा पर निकलेंगे। उन्होंने अभी तक किसी नए गठबंधन का ऐलान नहीं किया है, लेकिन इतना तय है कि उनके इस कदम से तमिलनाडु में सियासी समीकरणों का खेल बदलने वाला है।