सीजी भास्कर 8 अगस्त
रायचूर (कर्नाटक):
सच्ची दौलत पैसे से नहीं, दिल से मापी जाती है – ये कहावत रायचूर की 60 वर्षीय रंगम्मा ने जीकर दिखा दी। जो खुद भीख मांगकर जीवन यापन करती हैं, उन्होंने अंजनेया मंदिर के जीर्णोद्धार के लिए ₹1.83 लाख का अकल्पनीय दान दिया है।
जिस महिला के पास रहने को ठीक से घर नहीं, खाने को स्थायी साधन नहीं — उसने अपनी वर्षों की जमा पूंजी को मंदिर के लिए समर्पित कर दिया। रंगम्मा का यह कदम पूरे गांव ही नहीं, पूरे देश में मिसाल बन गया है।
6 साल तक बोरियों में जोड़े पैसे, 6 घंटे लगे गिनती में
रंगम्मा ने पिछले 6 वर्षों में भीख मांगकर जो पैसे इकट्ठे किए थे, उन्हें तीन बोरियों में रख रखा था। जब दान देने का वक्त आया तो गांववालों ने नोट गिनना शुरू किया — और क्या पता चला?
करीब 20 से अधिक लोगों ने 6 घंटे तक मेहनत की और कुल ₹1.83 लाख की गिनती पूरी की।
₹20,000 के नोट सड़ चुके थे, फिर भी हौसला नहीं टूटा
पैसों की गिनती के दौरान यह भी सामने आया कि लगभग ₹20,000 के पुराने नोट खराब हो चुके थे, लेकिन रंगम्मा ने बिना हिचकिचाहट जो बचा था वो भी दान कर दिया।
रंगम्मा पहले भी एक लाख रुपये की मदद से गांववालों के साथ मिलकर छोटा सा घर बनवा चुकी हैं, लेकिन उनका कहना है कि “मंदिर के लिए दान देने से जो सुख मिला, वो अब तक कभी महसूस नहीं हुआ।”
40 साल पहले आई थीं आंध्र प्रदेश से
गांव वालों के अनुसार रंगम्मा करीब 40 साल पहले आंध्र प्रदेश से बिज्जनगेरा गांव आई थीं और तभी से भीख मांगकर जीवन गुजार रही हैं।
हाल ही में जब गांववालों ने उनकी बोरियों में नोटों का अंबार देखा, तो सब हैरान रह गए। जब रंगम्मा से पूछा गया, तो उन्होंने साफ कहा कि वो इन पैसों को मंदिर के जीर्णोद्धार में लगाना चाहती हैं।
इंसानियत की मिसाल बनीं रंगम्मा
जहां लोग करोड़ों की दौलत होते हुए भी समाज से मुंह मोड़ लेते हैं, वहां एक 60 साल की बुजुर्ग महिला ने अपनी पूंजी नहीं, अपनी आस्था और आत्मा दान कर दी है।
रंगम्मा अब सिर्फ रायचूर नहीं, पूरे भारत के लिए प्रेरणा बन चुकी हैं।