पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म और तर्पण के लिए गयाजी जा रहे जरूरतमंद लोग कर सकेंगे आवेदन
सीजी भास्कर, 05 सितंबर। वैशाली नगर विधानसभा (Bhilai, Durg, Chhattisgarh) क्षेत्र के ऐसे रहवासी जो 7 सितंबर से प्रारंभ हो रहे पितृ पक्ष में श्राद्ध कर्म और तर्पण के लिए गया जी (बिहार) जाना चाहते हैं लेकिन आर्थिक (Financially) रूप से अक्षम हैं उनके लिए वैशाली नगर विधायक रिकेश सेन गयाजी में ठहरने की व्यवस्था करेंगे।
ऐसे जरूरतमंद वैशाली नगर विधायक कार्यालय (ज्ञान गंगा, जीरो रोड, शांति नगर) में सम्पर्क कर सहयोग और मार्गदर्शन ले सकेंगे।
आपको बता दें कि वैशाली नगर विधानसभा के रहवासियों के महाकुंभ यात्रा के आलावा अयोध्या श्रीराम धाम जाने के लिए भी विधायक रिकेश सेन ने जरूरतमंदों के लिए एक तरफ की रेल यात्रा की सुविधा प्रदान की थी।
वैशाली नगर विधायक रिकेश सेन ने कहा कि हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का समय बेहद महत्वपूर्ण होता है।

यह 15-16 दिन की अवधि होती है, जब पितरों यानि पूर्वजों की आत्मा की शांति और मुक्ति के लिए श्राद्ध और तर्पण किया जाता है।
सनातन धर्म में मान्यता है कि गयाजी में पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। इस दौरान लोग अपने पितरों को याद कर उनका आशीर्वाद लेते हैं।
माना जाता है कि पितृ पक्ष में पितृ धरती लोक पर आते हैं और सभी के कष्टों को दूर करते हैं।

श्री सेन ने बताया कि गयाजी जाने का सबसे शुभ और महत्वपूर्ण समय पितृपक्ष (श्राद्ध पक्ष) है, जो 7 सितंबर से प्रारंभ हो रहा है।
इसी समय पूर्वजों की आत्माएं धरती पर आती हैं और उनके लिए किया गया पिंडदान सीधे उन तक पहुँचता है, जिससे उन्हें मोक्ष प्राप्त होता है।

पितृपक्ष के दौरान लाखों तीर्थयात्री पिंडदान के लिए गयाजी जाते हैं।
वैशाली नगर विधानसभा के ऐसे रहवासी जो पिंडदान के लिए गयाजी जाना चाहते हैं मगर आर्थिक रूप से मजबूत नहीं हैं।
उनके लिए पिंडदान के लिए गयाजी में रूकने की व्यवस्था उनके द्वारा की जायेगी ताकि वो अपनी सहुलियत के मुताबिक गयाजी में रह कर पिंडदान कर पितरों को मोक्ष दिला सकें।
हिन्दू धर्म में मान्यता है कि गयाजी एक अत्यंत पवित्र और महत्वपूर्ण तीर्थस्थल है, जहाँ पिंडदान करने से पितरों को मोक्ष मिलता है और 108 कुलों का उद्धार होता है।
विष्णु पुराण के अनुसार गया में श्राद्ध करने से पितृ आत्माओं को शांति मिलती है।
यहाँ भगवान विष्णु के चरणचिह्न भी हैं और माता सीता ने भी सीता कुंड में महाराज दशरथ के लिए पिंडदान किया था, जिससे गयाजी का महत्व और भी बढ़ जाता है।

गया में श्राद्ध कर्म, तर्पण विधि और पिंडदान करने के बाद कुछ भी शेष नहीं रह जाता है और यहां से व्यक्ति पितृऋण से मुक्त हो जाता है।
गयाजी का महत्व इसी से पता चलता है कि महाभारत काल में पांडवों ने भी इसी स्थान पर श्राद्ध कर्म किया था।