(Waqf law Supreme Court decision) पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने अहम अंतरिम आदेश सुनाया। अदालत ने पूरे कानून को खारिज करने से इनकार कर दिया, लेकिन तीन धाराओं पर रोक लगाते हुए साफ कर दिया कि कानून पर अंतिम सुनवाई तक कुछ प्रावधान लागू नहीं होंगे। चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि असाधारण परिस्थितियों में ही कोई कानून पूरी तरह रोका या रद्द किया जा सकता है।
मदनी का स्वागत और ऐलान
जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी ने इस (Waqf law Supreme Court decision) का स्वागत किया। उन्होंने कहा कि अदालत ने मुसलमानों की चिंताओं को गंभीरता से सुना और तीन विवादित धाराओं पर रोक लगाई। मदनी ने दो टूक कहा कि यह लड़ाई खत्म नहीं हुई है और जमीयत इस काले कानून के रद्द होने तक संघर्ष जारी रखेगी।
‘संविधान पर सीधा हमला’
मौलाना मदनी ने कहा कि नया वक्फ कानून देश के संविधान पर सीधा हमला है। उनका कहना था कि यह कानून अल्पसंख्यकों की धार्मिक स्वतंत्रता और समान अधिकारों को चोट पहुंचाता है। उन्होंने इसे “संविधान-विरोधी साजिश” बताया और कहा कि इस मामले को पूरी ताकत के साथ आगे भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी।
कोर्ट में उठे अहम सवाल
नए कानून की धारा में कहा गया था कि वक्फ केवल वही व्यक्ति कर सकता है जो पांच साल से इस्लाम का पालन कर रहा हो। सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रावधान पर रोक लगाते हुए स्पष्ट किया कि जब तक राज्य सरकारें कोई प्रक्रिया तय नहीं करतीं, तब तक इस शर्त का पालन नहीं होगा। इसके अलावा, अदालत ने उस प्रावधान को भी रोका जिसमें जिला कलेक्टर को वक्फ संपत्ति विवादों पर अंतिम अधिकार दिया गया था।
संपत्तियों की सुरक्षा पर जोर
(Waqf law Supreme Court decision) में कोर्ट ने यह भी कहा कि किसी विवादित संपत्ति को ट्रिब्यूनल या अदालत के आदेश के बिना न तो बदला जा सकता है और न ही किसी तीसरे पक्ष को दिया जा सकता है। कोर्ट ने साफ किया कि कलेक्टर को मालिकाना हक तय करने का अधिकार नहीं दिया जा सकता। वहीं, वक्फ बोर्ड और काउंसिल में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संख्या सीमित रखने का भी आदेश दिया गया।
जमीयत की उम्मीदें
मौलाना मदनी ने कहा कि उन्हें पूरा भरोसा है कि आगे की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट इस काले कानून को खत्म करेगा। उन्होंने अपने वकीलों का शुक्रिया अदा किया और कहा कि मजबूत बहस ने अदालत को यकीन दिलाया कि संशोधन न केवल असंवैधानिक हैं बल्कि धार्मिक आज़ादी पर भी गहरी चोट करते हैं।