सीजी भास्कर, 18 सितंबर। माओवादी संगठन के भीतर आत्ममंथन की प्रक्रिया तेज हो गई है। दो दिन पहले केंद्रीय प्रवक्ता अभय के नाम से पत्र सामने आया था, जिसमें शांति वार्ता की बात कही गई थी।
अब सोनू के नाम से एक और धमाकेदार पत्र सार्वजनिक हुआ है, जिसमें लिखा गया है कि –
आंदोलन ने गंभीर गलतियां कीं और हथियार उठाना हमारी सबसे बड़ी भूल थी। इसी पत्र में जनता से माफी मांगी गई है। संकेत दिया गया है कि माओवादी अब नए रास्ते पर बढ़ना चाहते हैं। यह घटनाक्रम माओवादी समर्पण (Maoist Surrender) की दिशा में एक बड़ा मोड़ माना जा रहा है।
मल्लोजुला वेणुगोपाल राव उर्फ अभय उर्फ भूपति उर्फ सोनू ने पत्र लिखकर स्वीकार किया कि-
जनता के असली मुद्दे जमीन, जंगल और सम्मान थे। लेकिन हमने बंदूक का सहारा लिया। इस हिंसक राह ने निर्दोषों को पीड़ा दी और आंदोलन की जड़ों को कमजोर कर दिया।
पत्र में यह भी लिखा गया है कि-
अब आंदोलन बंदूक नहीं, बल्कि सामाजिक और संगठनात्मक आधार पर आगे बढ़ेगा।
गांव–गांव के छोटे संघर्ष और महिलाओं की भागीदारी को ही असली ताकत बताया गया है।
यह बयान माओवादी समर्पण (Maoist Surrender) की ओर बढ़ते कदम की स्पष्ट झलक देता है।
पत्र में सोनू ने सरकार की समर्पण और पुनर्वास नीतियों पर भी सवाल उठाए।
उन्होंने कहा कि –
नकली आत्मसमर्पण दिखाकर जनता को गुमराह किया जा रहा है। लेकिन साथ ही यह भी माना कि संगठन ने अंधाधुंध हिंसा और बाहरी विचारधारा की नकल करके अपनी जड़ों से दूरी बना ली। यही वजह है कि कई इलाकों में आंदोलन कमजोर पड़ा।
अब पार्टी आत्ममंथन की प्रक्रिया में है और नई रणनीति जनता की आकांक्षाओं पर आधारित होगी।
सोनू ने युवाओं से आह्वान किया कि वे शांतिपूर्ण संघर्ष अपनाकर अपने अधिकारों की रक्षा करें। इस अपील को कई लोग माओवादी समर्पण (Maoist Surrender) का शुरुआती संकेत मान रहे हैं।
कौन है अभय उर्फ सोनू
तेलंगाना के करीमनगर जिले के पेद्दापल्ली निवासी 69 वर्षीय मल्लोजुला वेणुगोपाल उर्फ अभय का अतीत लंबा रहा है। उन्होंने बीकाम की पढ़ाई की और उनके दादा व पिता दोनों स्वतंत्रता सेनानी रहे।
वेणुगोपाल तीन दशकों से अधिक समय से घर से दूर हैं। उनके भाई किशनजी को 2011 में कोलकाता मुठभेड़ में मार गिराया गया था।
उनकी पत्नी तारक्का ने पिछले साल गढ़चिरौली में आत्मसमर्पण किया। अब पुनर्वास कैंप में रह रही हैं। अब अभय भी अपनी पत्नी से जुड़ने की इच्छा जता रहे हैं। यही कारण है कि इस पत्र को विशेषज्ञ एक बड़े माओवादी समर्पण (Maoist Surrender) की प्रस्तावना मान रहे हैं।
पत्र के अंत में सोनू ने स्पष्ट संकेत दिया है कि संगठन अब पूरी तरह आत्ममंथन की प्रक्रिया में है। नई रणनीति जनता की आकांक्षाओं पर आधारित होगी।
उन्होंने युवाओं से यह भी कहा कि –
वे सरकारी लालच में न फंसकर अपने पारंपरिक अधिकारों की रक्षा के लिए संगठित और शांतिपूर्ण संघर्ष का रास्ता अपनाएं। उनके इस आह्वान को माओवादी समर्पण (Maoist Surrender) का निर्णायक संकेत माना जा रहा है।
