सीजी भास्कर, 19 सितंबर। हर दिन शहरों से निकलने वाला कचरा अब सिर्फ बोझ नहीं रहेगा, बल्कि उससे बिजली (Waste to Energy) भी बनाई जा सकती है। लेकिन सवाल यह है कि कब? क्योंकि एक साल पहले जिस महत्वाकांक्षी योजना वेस्ट टू इलेक्ट्रिसिटी प्लांट (Waste to Energy) को सरकार ने धरातल पर लाने का खाका तैयार किया था, वह अब तक कागज़ों में ही अटका हुआ है।
राजधानी रायपुर समेत कई नगर निगमों में कचरे का पहाड़ खड़ा होता जा रहा है। प्रतिदिन लगभग 750 मीट्रिक टन कचरा निकल रहा है। इस कचरे के निस्तारण और ऊर्जा उत्पादन के लिए रायपुर, दुर्ग और भिलाई को पहले चरण में शामिल करते हुए तीनों जिलों में प्लांट लगाने का प्रस्ताव (Waste to Energy) तैयार हुआ था। केंद्र से 400 करोड़ रुपये की मंजूरी मांगी गई थी, लेकिन पिछले एक साल से अब तक कोई जवाब नहीं मिला।
स्थिति यह है कि नगर निगमों ने पूरी योजना बना ली, तकनीकी सर्वे पूरा कर लिया और स्थान भी तय कर दिए, मगर मंजूरी की फाइल दिल्ली की मेज पर अटकी हुई है। दुर्ग-भिलाई, बिलासपुर और अन्य शहरों में भी रोजाना 400 से 500 टन कचरा निकलता है, जिसे अब तक केवल डंपिंग यार्ड में ही फेंका जा रहा है। यही कचरा अब (Waste to Energy) तकनीक से बिजली में बदला जा सकता है।
10 मेगावाट बिजली का उत्पादन
नगरीय प्रशासन विभाग के मुताबिक, सात नगर निगम क्षेत्रों से इकट्ठा कचरे से 10 मेगावाट तक बिजली (Waste to Energy) उत्पादन संभव है। प्रस्ताव में कहा गया है कि यदि यह योजना धरातल पर आती है तो न केवल अतिरिक्त बिजली मिलेगी, बल्कि नगर निगमों का भारी खर्च भी बचेगा। फिलहाल निगम हर महीने करोड़ों रुपये कचरे के निस्तारण पर खर्च करते हैं।
आय होगी, मुफ्त बिजली मिलेगी
योजना शुरू होने पर प्लांट से बनी बिजली छत्तीसगढ़ पावर कार्पोरेशन को बेची जाएगी। इससे नगर निगमों को आय होगी और उनकी बिजली खपत का खर्च लगभग पूरा हो जाएगा। अधिकारियों का दावा है कि यह व्यवस्था (Waste to Energy) प्रोजेक्ट को आत्मनिर्भर बना देगी। साथ ही नगर निगमों की वित्तीय स्थिति भी सुधरेगी।
किन शहरों में लगेगा प्लांट
पायलट प्रोजेक्ट के लिए रायपुर, दुर्ग, भिलाई, बिलासपुर, रतनपुर, बोदरी और मुंगेली का चयन किया गया है। इनमें रायपुर, दुर्ग और भिलाई को पहले चरण में प्राथमिकता दी गई है। बाकी जिलों में बाद में प्लांट (Waste to Energy) लगाए जाने की योजना है।
मंजूरी पर सवाल
योजना के धरातल पर न उतर पाने का कारण सिर्फ मंजूरी की देरी है। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि जल्द ही केंद्र से स्वीकृति मिलती है, तो अगले दो सालों में (Waste to Energy) प्रोजेक्ट से बिजली उत्पादन शुरू हो सकता है। लेकिन फिलहाल सवाल यही है कि क्या फाइल फिर से कागज़ों के ढेर में दबकर रह जाएगी या हरी झंडी मिलेगी।
पर्यावरण और अर्थव्यवस्था दोनों को फायदा
इस प्रोजेक्ट से पर्यावरण को भी बड़ा लाभ होगा। अब तक डंपिंग यार्ड और खुले में फेंका जाने वाला कचरा न केवल प्रदूषण फैलाता है, बल्कि भूजल और वायु की गुणवत्ता को भी प्रभावित करता है। वहीं, बिजली उत्पादन से प्रदूषण कम होगा और हर महीने करोड़ों की बचत होगी।
