सीजी भास्कर, 13 अक्टूबर। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक याचिका पर सुनवाई की, जिसमें देशभर की अदालतों और बार एसोसिएशनों में महिला वकीलों को पेशेवर चैंबर/केबिन आवंटन के लिए एकसमान और लैंगिक संवेदनशील नीति की मांग की गई थी। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और जोयमाल्या बागची की पीठ ने केंद्र, बार काउंसिल ऑफ इंडिया और शीर्ष अदालत के महासचिव को नोटिस जारी किया। सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आज न्यायिक क्षेत्र में लगभग 60 प्रतिशत महिलाएं (Supreme Court Women Judges Empowerment) अपनी प्रतिभा के बल पर आगे बढ़ रही हैं, न कि किसी आरक्षण के सहारे। इसलिए महिला वकीलों के लिए कोटा की मांग विरोधाभासी प्रतीत होती है।
न्यायमूर्ति सूर्यकांत ने कहा कि वह व्यक्तिगत रूप से चैंबर प्रणाली के खिलाफ हैं और उन्होंने सुझाव दिया कि इसके बजाय क्यूबिकल सिस्टम या साझा कार्यस्थल ज्यादा कारगर हो सकता है। उन्होंने कहा कि विभिन्न फोरमों पर हम यह देख रहे हैं कि न्यायिक सेवाओं में महिलाएं (Supreme Court Women Judges Empowerment) बड़ी संख्या में आ रही हैं और न्यायपालिका में अपने दम पर सम्मानजनक स्थान बना रही हैं। न्यायमूर्ति ने यह भी कहा कि यह थोड़ा विरोधाभासी है कि जब महिलाएं योग्यता से सफलता हासिल कर रही हैं, तब विशेषाधिकार या कोटा की मांग की जा रही है।
न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि न्यायिक पेशे में आने वाली युवा महिलाओं को सुरक्षा और सहयोग की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि अदालत परिसरों में महिलाओं के लिए क्रेच, वॉशरूम और सुविधाएं बढ़ाने की दिशा में गंभीरता से काम होना चाहिए। उन्होंने कहा कि अक्सर महिलाएं बच्चों की देखभाल के कारण अपने पेशे को छोड़ देती हैं, ऐसे में उनके लिए सुविधाजनक माहौल बनाना आवश्यक है (Supreme Court Women Judges Empowerment)।
वरिष्ठ वकील सोनिया माथुर ने याचिकाकर्ताओं की ओर से दलील दी कि वर्तमान में केवल रोहिणी कोर्ट में महिला वकीलों को 10 प्रतिशत चैंबर कोटा मिलता है। याचिका में कहा गया कि कई महिला वकील 15 से 25 वर्षों तक कार्य करने के बावजूद चैंबर पाने से वंचित रहती हैं और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन में भी महिला वकीलों के लिए कोई आरक्षण नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्पणी न्यायपालिका में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी और उनकी क्षमता पर विश्वास का प्रतीक है। अदालत ने यह स्पष्ट संकेत दिया कि महिला वकील अब अपने कौशल और मेहनत के दम पर मुकाम हासिल कर रही हैं, और आने वाले वर्षों में न्यायिक व्यवस्था में महिलाओं की भूमिका और भी मजबूत होगी।