कट्टा रामचंद्र रेड्डी की मौत पर उठे आरोपों को कोर्ट ने किया खारिज, राज्य सरकार को राहत
अदालत ने कहा – पुलिस ने एनएचआरसी और सुप्रीम कोर्ट की सभी गाइडलाइंस का पालन किया
अबूझमाड़ की मुठभेड़ पर एसआइटी जांच की मांग को बताया “कानूनी प्रक्रिया में दखल”
सीजी भास्कर, 17 अक्टूबर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने नारायणपुर जिले में हुई मुठभेड़ को लेकर दायर उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें इसे फर्जी बताते हुए विशेष जांच दल (एसआइटी) गठित करने की मांग की गई थी। अदालत ने कहा कि केवल अनुमान और आरोपों के आधार पर किसी घटना को “फर्जी एनकाउंटर” नहीं कहा जा सकता।
मुख्य न्यायाधीश रमेश कुमार सिन्हा और न्यायमूर्ति विभु दत्त गुरु की खंडपीठ ने अपने निर्णय में कहा कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) की सभी गाइडलाइंस का पालन किया है। अदालत ने यह भी कहा कि (Fake Encounter Case Chhattisgarh) किसी मुठभेड़ को फर्जी बताने के लिए ठोस और सत्यापित सबूत जरूरी हैं, महज भावनात्मक दावे पर्याप्त नहीं।
तेलंगाना निवासी राजा चंद्रा ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर कहा था कि उसके पिता कथा उर्फ कट्टा रामचंद्र रेड्डी और उनके साथी कदरी सत्यनारायण रेड्डी को सुरक्षा बलों ने हिरासत में लेकर मार दिया। उसने दावा किया कि 22 सितंबर 2025 को अबूझमाड़ क्षेत्र में हुई मुठभेड़ असल में नकली थी और इसमें उसके पिता को सुनियोजित ढंग से मारा गया। याचिकाकर्ता ने कहा कि इस पूरे मामले की जांच एक स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाए, ताकि सच सामने आ सके।
राज्य सरकार की ओर से महाधिवक्ता प्रफुल्ल एन. भारत ने अदालत को बताया कि यह मुठभेड़ पूरी तरह वास्तविक थी और इसमें पुलिस ने कोई अनियमितता नहीं की। उन्होंने कहा कि माओवादी दल ने पहले सुरक्षा बलों पर गोली चलाई थी, जिसके जवाब में कार्रवाई की गई। मुठभेड़ की रिपोर्ट 24 घंटे के भीतर एनएचआरसी को भेज दी गई थी, जबकि पोस्टमार्टम की वीडियोग्राफी, मजिस्ट्रियल जांच और एफएसएल रिपोर्ट समेत सभी कानूनी प्रक्रिया का पालन किया गया। सरकार ने यह भी बताया कि मारे गए कट्टा रामचंद्र रेड्डी पर छत्तीसगढ़ में 29, महाराष्ट्र में 6 और तेलंगाना में 2 गंभीर आपराधिक मामले दर्ज थे।
हाई कोर्ट ने कहा कि केवल चोटों या अटकलों के आधार पर किसी मुठभेड़ को फर्जी नहीं कहा जा सकता। अदालत ने माना कि याचिकाकर्ता अपने दावों के समर्थन में कोई ठोस साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाया। न्यायालय ने कहा कि (Fake Encounter Case Chhattisgarh) इस स्थिति में एसआइटी जांच का आदेश देना पुलिस की नियमित प्रक्रिया में अनावश्यक हस्तक्षेप होगा। कोर्ट ने यह भी उल्लेख किया कि राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट और एनएचआरसी के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए मजिस्ट्रियल जांच कराई है, इसलिए याचिका निराधार है।
फैसले में अदालत ने टिप्पणी की कि “कानून भावनाओं पर नहीं, साक्ष्यों पर चलता है। केवल राजनीतिक बयानबाजी या मीडिया रिपोर्टों के आधार पर किसी पुलिस कार्रवाई को संदेह के घेरे में नहीं डाला जा सकता।” कोर्ट ने कहा कि जब तक कोई ठोस प्रमाण न हो, तब तक ऐसी याचिकाएं केवल न्याय प्रक्रिया में अनावश्यक विलंब उत्पन्न करती हैं।
सरकार को राहत देते हुए खंडपीठ ने कहा कि इस मुठभेड़ में सभी कानूनी और मानवीय प्रोटोकॉल का पालन किया गया था। एनएचआरसी को दी गई रिपोर्ट, वीडियोग्राफी और फॉरेंसिक साक्ष्य इस बात का प्रमाण हैं कि कार्रवाई वैधानिक ढंग से की गई थी। अदालत ने याचिका को खारिज करते हुए राज्य सरकार की कार्रवाई को उचित ठहराया।
कानूनी विशेषज्ञों ने इस फैसले को संतुलित और न्यायसंगत बताया है। उनका कहना है कि यह फैसला पुलिस बलों के मनोबल को बढ़ाएगा और यह संदेश देगा कि कानून व्यवस्था से जुड़ी कार्रवाई पर केवल ठोस तथ्यों के आधार पर ही सवाल उठाए जा सकते हैं, भावनाओं के आधार पर नहीं।