नोएडा में एक (cat sterilization case) ने लोगों को हैरान कर दिया है। इलाज के दौरान लापरवाही के चलते बिल्ली की मौत पर उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग ने पशु चिकित्सक को दोषी ठहराया है। आयोग ने डॉक्टर को आदेश दिया है कि वे बिल्ली के मालिक को 25,000 रुपये का मुआवजा दें। मामला सेक्टर 105 स्थित एक वेटनरी क्लिनिक का है, जहां (cat death during surgery) की यह घटना हुई।
नसबंदी के बाद बिगड़ी बिल्ली की हालत
शिकायतकर्ता तमन गुप्ता ने बताया कि जनवरी 2024 में उन्होंने अपनी मां के साथ पेट वेल वेटनरी क्लिनिक में बिल्ली का ब्लड टेस्ट कराया था। जुलाई में डॉक्टर सुरेश सिंह ने बिल्ली की नसबंदी की सलाह दी। करीब 35 मिनट चली सर्जरी के बाद बिल्ली दो घंटे तक बेहोश रही। मालिक ने डॉक्टर से कई बार संपर्क किया, लेकिन कोई मदद नहीं मिली। जब तक उसे इमरजेंसी रूम पहुंचाया गया, तब तक बिल्ली ने दम तोड़ दिया।
Cat Sterilization Death Case : डॉक्टर ने ब्लड रिपोर्ट छिपाई, लगा लापरवाही का आरोप
गुप्ता ने आयोग में दायर शिकायत में आरोप लगाया कि डॉक्टर ने ब्लड रिपोर्ट साझा नहीं की और बिल्ली की हालत खराब होने के बावजूद सर्जरी कर दी। साथ ही 17,480 रुपये फीस ली गई, लेकिन उचित सेवा नहीं दी गई। आयोग की जांच में यह बात सामने आई कि रिपोर्ट में पहले से बीमारी के संकेत मौजूद थे, जिन्हें जानबूझकर नज़रअंदाज किया गया।
मानसिक पीड़ा और मुकदमेबाजी की कीमत
तमन गुप्ता ने आयोग में 15 लाख रुपये के मुआवजे की मांग की थी, जिसमें मानसिक पीड़ा और कानूनी खर्च शामिल था। हालांकि, आयोग ने तथ्यों की समीक्षा कर पाया कि डॉक्टर की गलती ‘सेवा में कमी’ (Deficiency in Service) की श्रेणी में आती है। डॉक्टर ने नोटिस मिलने के बावजूद कोई जवाब नहीं दिया, जिसके बाद 17 जून को यह मामला एकतरफा सुना गया।
Cat Sterilization Death Case : 30 दिन में देना होगा मुआवजा, नहीं तो ब्याज सहित भुगतान
आयोग ने अपने आदेश में कहा कि यह “जानबूझकर जोखिम की अनदेखी” का मामला है। डॉक्टर सुरेश सिंह को 30 दिनों के भीतर 25,000 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया गया है। अगर तय समय में भुगतान नहीं हुआ तो पूरी राशि पर 6 प्रतिशत वार्षिक ब्याज देना होगा। आयोग ने कहा कि पशु भी संवेदनशील प्राणी हैं और उनके साथ लापरवाही ‘उपभोक्ता अधिकारों’ (Consumer Rights) का उल्लंघन मानी जाएगी।
फैसले का संदेश: पशु अधिकार भी हैं अहम
यह मामला इस बात की याद दिलाता है कि भारत में अब animal rights awareness (पशु अधिकार जागरूकता) केवल कानून की किताबों तक सीमित नहीं है। चाहे मामला पालतू जानवर का हो या किसी आवारा पशु का, चिकित्सकीय लापरवाही पर अब जवाबदेही तय होगी। यह फैसला भविष्य में पशु चिकित्सा सेवाओं के लिए भी एक मिसाल बनेगा।
