सीजी भास्कर 5 नवम्बर राजस्थान में पिछले कुछ दिनों से लगातार हो रहे Rajasthan Road Accident ने राज्य ही नहीं, बल्कि पूरे देश को झकझोर दिया है। फलोदी, जयपुर और जैसलमेर में हुए तीन बड़े हादसों में करीब 50 लोगों की जान चली गई। इन घटनाओं के बाद राजस्थान हाईकोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए राज्य सरकार से जवाब मांगा है। कोर्ट ने कहा कि “जीवन का अधिकार (Right to Life) केवल सांस लेने तक सीमित नहीं है, बल्कि नागरिकों की सुरक्षा भी उसी का हिस्सा है।”
हाईकोर्ट का स्वतः संज्ञान, सरकार से मांगी शुरुआती रिपोर्ट
जस्टिस अनुरूप सिंघी और जस्टिस पीएस भाटी की खंडपीठ ने Rajasthan High Court Notice के तहत राज्य सरकार को सड़क सुरक्षा (Road Safety Measures) पर विस्तृत रिपोर्ट देने का निर्देश दिया है। अदालत ने यह टिप्पणी तब की जब हाल में हुई तीन बड़ी दुर्घटनाओं में दर्जनों लोग मारे गए और कई घायल हुए। कोर्ट ने कहा, “यह केवल आंकड़ों की बात नहीं, बल्कि हर संख्या के पीछे एक परिवार की पीड़ा जुड़ी है।”
फलोदी, जयपुर और जैसलमेर के हादसों ने बढ़ाई चिंता
राज्य में बीते सप्ताह तीन भीषण सड़क हादसे हुए। फलोदी (Phalodi) में एक बस और ट्रक की टक्कर में 15 लोगों की मौत हो गई। जयपुर (Jaipur) में डंपर की चपेट में आने से 14 लोगों की जान गई, जबकि जैसलमेर (Jaisalmer) में बस में आग लगने से 20 लोग जिंदा जल गए। एक ही हफ्ते में 50 से ज्यादा मौतों ने पूरे प्रदेश को शोक में डाल दिया।
हाईकोर्ट ने इन घटनाओं का उल्लेख करते हुए कहा कि “ऐसे हादसे न केवल प्रशासनिक लापरवाही का प्रतीक हैं, बल्कि नागरिक जागरूकता की कमी भी उजागर करते हैं।”
कोर्ट ने कहा — सड़क सुरक्षा में लापरवाही “गंभीर चिंता का विषय”
अदालत ने अपने आदेश में यह भी कहा कि Rajasthan Road Accident की बढ़ती घटनाएं एक व्यापक प्रणालीगत खामी (Systemic Failure) को दर्शाती हैं। कोर्ट ने कहा, “देश मानव संसाधन को अमूल्य मानता है, लेकिन नागरिकों की सुरक्षा के प्रति व्यापक उदासीनता एक गंभीर सामाजिक संकट बन चुकी है।”
साथ ही अदालत ने संबंधित विभागों को निर्देश दिया कि वे यह बताएं कि सड़कों की स्थिति सुधारने, साइनबोर्ड लगाने और ट्रैफिक पुलिस की तैनाती में क्या ठोस कदम उठाए गए हैं।
एक महीने में कई हादसे, न्यायालय ने जताई सख्त नाराजगी
कोर्ट ने राज्य सरकार और केंद्र दोनों से जवाब तलब किया है। अदालत ने कहा कि यह केवल Rajasthan Road Accident तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश की सड़क व्यवस्था पर प्रश्नचिह्न है। जस्टिस सिंघी ने कहा, “हर बार हादसे के बाद मुआवजा घोषित कर देना समस्या का समाधान नहीं है। असली सुधार तब होगा जब सड़कें और उनका उपयोग दोनों सुरक्षित हों।”
कोर्ट ने अगली सुनवाई की तारीख 13 नवंबर तय की है और तब तक सभी विभागों से रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए हैं।
संवेदना और जिम्मेदारी — अदालत ने जताई पीड़ा
अदालत ने उन परिवारों के प्रति संवेदना व्यक्त की जिन्होंने हाल की दुर्घटनाओं में अपने प्रियजनों को खोया है। जस्टिस भाटी ने कहा, “हमारी संवेदना केवल शब्दों तक सीमित नहीं रहनी चाहिए, बल्कि यह नीति और अमल में झलकनी चाहिए।”
हाईकोर्ट ने यह भी कहा कि प्रशासनिक जवाबदेही (Administrative Accountability) तय की जानी चाहिए ताकि भविष्य में ऐसे हादसों की पुनरावृत्ति न हो।
