सीजी भास्कर, 5 नवंबर। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की नई रिपोर्ट ने दुनिया को एक गंभीर चेतावनी दी है। रिपोर्ट में कहा गया है कि अगर सभी देश अपने राष्ट्रीय जलवायु संकल्पों को पूरी तरह लागू कर भी लें, तो भी इस सदी में वैश्विक तापमान (Global Temperature Rise Report) में 2.3 से 2.5 डिग्री सेल्सियस तक की वृद्धि हो सकती है। यह लक्ष्य 1.5 डिग्री सेल्सियस (Paris Agreement Target) की सीमा से कहीं अधिक है।
यूएनईपी की “एमिशन गैप रिपोर्ट 2025 (Emissions Gap Report 2025)” के अनुसार, मौजूदा नीतियों के तहत पृथ्वी का तापमान लगभग 2.8 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ सकता है। पिछले वर्ष यह अनुमान 3.1 डिग्री सेल्सियस था। इसका मतलब है कि कुछ प्रगति तो हुई है, लेकिन यह लक्ष्य को हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं है।
पेरिस समझौते के लक्ष्य से अब भी बहुत दूर
रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया 1.5 डिग्री सेल्सियस तापमान वृद्धि सीमा को बनाए रखने के पेरिस समझौते के लक्ष्य से “काफी दूर” है। यूएनईपी की कार्यकारी निदेशक इंगर एंडरसन (Inger Andersen) ने कहा, पेरिस समझौते के तहत किए गए वादों को पूरा करने के लिए राष्ट्रों ने तीन बार प्रयास किया है, लेकिन हर बार वे लक्ष्य से चूक गए हैं। अब केवल अभूतपूर्व स्तर की उत्सर्जन कटौती (unprecedented emission cuts) से ही पृथ्वी को बचाया जा सकता है।”
रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन
रिपोर्ट के मुताबिक, 2024 में वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन (Global Temperature Rise Report) 57.7 गीगाटन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर पहुंच गया, जो पिछले वर्ष की तुलना में 2.3% अधिक है। इस रफ्तार से तापमान वृद्धि की गति कम नहीं होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि अगले दशक में उत्सर्जन में भारी कमी नहीं आई, तो 2035 तक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस सीमा को पार कर जाएगा।
जी-20 देशों पर बढ़ी जिम्मेदारी
यूएनईपी की रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि G-20 समूह (G-20 countries), जो वैश्विक उत्सर्जन के करीब 77% के लिए जिम्मेदार हैं, अपने 2030 के जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में भी आगे नहीं बढ़ रहे। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर विकसित देश तुरंत अपनी कार्बन-न्यूट्रल योजनाओं (carbon neutral plans) को तेज नहीं करते, तो तापमान वृद्धि को सीमित रखना असंभव होगा।
जलवायु संकट पर वैश्विक एकजुटता की जरूरत
यूएनईपी रिपोर्ट ऐसे समय में जारी हुई है जब कुछ ही दिनों में संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन (UN Climate Summit) आयोजित होने वाला है। वैज्ञानिकों का कहना है कि अब दुनिया को केवल नीतियों से नहीं, बल्कि ठोस कार्रवाई से जवाब देना होगा। जलवायु वैज्ञानिकों के मुताबिक, 2025 से 2035 के बीच के दस वर्ष तय करेंगे कि पृथ्वी रहने योग्य बनी रहेगी या नहीं।
