सीजी भास्कर 21 नवम्बर दिल्ली हाई कोर्ट ने एक ऐसे मामले पर अहम फैसला दिया है, जिसमें एक युवती ने नाबालिग रहते हुए अपने पति के साथ संबंध बनाए थे। वहीं, पति ने अदालत से गुहार लगाई थी कि यह संबंध दोनों की सहमति से बना था, इसलिए उसके खिलाफ POCSO केस नहीं चलना चाहिए। लेकिन अदालत ने साफ कहा कि minor wife consent law भारतीय कानून में मान्य नहीं है और सहमति का दावा इस अपराध को हल्का नहीं कर सकता।
कोर्ट ने कहा—कम उम्र की शादी को न्यायिक मान्यता नहीं
जस्टिस संजीव नरूला ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि कानून द्वारा 18 वर्ष की आयु तय की गई है। इसलिए 18 साल से कम उम्र के व्यक्ति के साथ यौन संबंध स्थापित करना स्वतः ही sexual offence under child protection law की श्रेणी में आता है।
कोर्ट ने यह भी कहा कि संविधान के अनुच्छेद 226 का उपयोग कर न्यायालय “समानता” के नाम पर किसी ऐसे संबंध को अपवाद नहीं बना सकता, जो कानून में स्पष्ट रूप से अपराध घोषित है।
minor wife consent law : ‘सहमति’ पारिवारिक, सामाजिक दबाव का परिणाम भी हो सकती है
अदालत ने लिखा कि नाबालिग की सहमति अक्सर उसकी परिस्थितियों, पारिवारिक दबाव या सामाजिक अपेक्षाओं से प्रभावित हो सकती है। इसलिए किसी भी प्रकार की सहमति को वैध मान लेना, child marriage relationship exception को कानून से ऊपर रखने जैसा होगा।
जस्टिस नरूला के अनुसार, “दंपति के बीच भावनात्मक संबंध गहरे हों या उनका रिश्ता स्थिर हो—इससे पॉक्सो के तहत अपराध का स्वरूप नहीं बदलता।”
मामला क्या था? गर्भवती हुई नाबालिग, बाद में हुआ मुकदमा
इस केस में लड़की नाबालिग थी जब उसके पति ने उससे संबंध बनाए और वह गर्भवती हो गई। उसने नाबालिग रहते हुए बच्चे को जन्म दिया। 2023 में मामला दर्ज हुआ और बाद में युवती—जो अब बालिग है—ने कहा कि वह अपने पति पर कोई कार्रवाई नहीं चाहती क्योंकि सब कुछ आपसी सहमति से हुआ था।
हालांकि, अदालत ने माना कि marital sexual act with minor को केवल इसलिए नजरअंदाज नहीं किया जा सकता कि पीड़िता अब अपने बयान बदल रही है।
minor wife consent law : आरोपी और उसके परिवार की याचिका भी खारिज
पति ने ही नहीं, बल्कि उसके माता-पिता ने भी पॉक्सो और बाल विवाह से जुड़े केस को रद्द करने की मांग की थी। उनका तर्क था कि पीड़िता खुद आरोपों को नकार रही है।
लेकिन कोर्ट का निर्णय साफ था—POCSO एक special protective law है, और इसका उद्देश्य ही है कि नाबालिग के साथ होने वाले किसी भी प्रकार के शारीरिक संबंध को गंभीर अपराध माना जाए। इसलिए अदालत याचिका पर हस्तक्षेप नहीं कर सकती।
आदेश का असर—बाल विवाह और पॉक्सो पर कड़ा संदेश
इस फैसले को विशेषज्ञ नाबालिगों की सुरक्षा के लिहाज से महत्वपूर्ण मान रहे हैं। कोर्ट का तर्क यह था कि अगर सहमति के आधार पर ऐसे मामलों में आरोपी को छोड़ दिया जाए, तो समाज में गलत संकेत जाएगा और कम उम्र में विवाह को अप्रत्यक्ष बढ़ावा मिल सकता है।
