सीजी भास्कर, 26 नवंबर। छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच दशकों पुराना महानदी जल विवाद (Mahanadi Jal Vivad) एक बार फिर गहराता दिख रहा है। ओडिशा ने गर्मियों के दौरान महानदी बेसिन से अधिक पानी की मांग की है, जिस पर छत्तीसगढ़ ने कड़ा विरोध जताया है। ट्रिब्यूनल ने दोनों राज्यों को आपसी सहमति से समाधान निकालने का एक और अवसर दिया है और अगली सुनवाई 20 दिसंबर को तय की है।
हाल ही में ट्रिब्यूनल में हुई सुनवाई में दोनों राज्यों ने अपने पक्ष रखे। छत्तीसगढ़ अधिकारियों ने कहा कि गर्मियों में नदी में पानी की उपलब्धता कम होती है, ऐसे में ओडिशा की अतिरिक्त जल मांग पूरी करना संभव नहीं है। ट्रिब्यूनल की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट की पूर्व जज बेला त्रिवेदी कर रही हैं। उन्होंने दोनों राज्यों से सुनवाई से पहले सहमति पत्र (Mahanadi Jal Vivad Agreement) लाने को कहा है।
टेक्निकल कमेटी पर जिम्मेदारी
दोनों राज्यों की संयुक्त टेक्निकल कमेटी अब गर्मियों में उपलब्ध जल का दोबारा मूल्यांकन कर रही है। यह कमेटी फील्ड विज़िट कर चुकी है और अब डेटा संग्रह कर 20 दिसंबर से पहले एक समाधान प्रस्ताव तैयार करेगी।
Mahanadi Jal Vivad सीएम स्तर पर भी प्रयास जारी
दिल्ली में हाल ही में छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री विष्णु देव साय और ओडिशा के मुख्यमंत्री मोहनचरण मांझी की मुलाकात हुई। बैठक में निर्माणाधीन जल परियोजनाओं को पूरा करने पर सहमति बनी, लेकिन महानदी जल बंटवारा (Mahanadi Water Sharing) का मूल विवाद अभी अनसुलझा है। विशेषज्ञों के अनुसार, दोनों राज्यों में “डबल इंजन सरकार” होने से इस बार सुलह की संभावना ज्यादा है।
1983 से लगातार विवाद
महानदी जल विवाद (Mahanadi Jal Vivad) 1983 से चला आ रहा है। ओडिशा का आरोप छत्तीसगढ़ अपने बैराज (रुद्री बैराज, गंगरेल बांध) से हीराकुंड बांध तक जाने वाले प्राकृतिक प्रवाह को रोक रहा है। वहीं छत्तीसगढ़ का तर्क वह केवल अपने हिस्से का पानी उपयोग कर रहा है और प्रवाह बाधित नहीं हो रहा।
Mahanadi Jal Vivad महानदी से जुड़े मुख्य तथ्य
कुल लंबाई 885 किमी
उद्गम सिहावा पर्वत (धमतरी)
सहायक नदियां शिवनाथ, हसदेव, जोंक, तेल, पैरी, सोंढूर, अरपा
Mahanadi Jal Vivad विवाद केंद्र
छत्तीसगढ़: रुद्री बैराज, गंगरेल बांध
ओडिशा: हीराकुंड बांध
20 दिसंबर की सुनवाई पर टिकी नजरें
ट्रिब्यूनल ने साफ किया है कि यदि आपसी सहमति नहीं बनती तो वह दोनों राज्यों के तर्कों पर आधारित अंतिम निर्णय सुनाएगा। लिहाजा अगली सुनवाई से पहले तकनीकी समिति की रिपोर्ट और दोनों राज्यों का व्यवहार तय करेगा कि विवाद किस दिशा में जाएगा।
