सीजी भास्कर, 27 नवंबर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट की डिवीजन बेंच ने (Father Maintenance Law) भरण-पोषण से जुले एक महत्वपूर्ण मामले में बड़ा फैसला सुनाते हुए कहा कि बेटी के भरण-पोषण के साथ ही विवाह का खर्च उठाना पिता की कानूनी और नैतिक दोनों ही जिम्मेदारी है। चाहे बेटी बालिग हो, फिर भी पिता अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकता।
जस्टिस संजय के. अग्रवाल और जस्टिस संजय कुमार जायसवाल की बेंच ने कहा कि अविवाहित बेटी के लिए विवाह का खर्च उठाना पिता का न केवल कानूनी दायित्व है बल्कि भारतीय सामाजिक ढांचे में यह उसकी नैतिक जिम्मेदारी भी मानी जाती है। कोर्ट ने परिवार न्यायालय के फैसले को बरकरार रखते हुए स्पष्ट किया कि पिता को यह राशि देना ही होगी।
यह मामला (Father Maintenance Law) 25 वर्षीय अविवाहित बेटी की याचिका से जुड़ा है, जिसमें उसने मासिक भरण-पोषण और शादी के लिए कुल 15 लाख रुपये की मांग की थी। बेटी ने कहा था कि उसके पिता शासकीय शिक्षक हैं और 44,642 रुपये का मासिक वेतन प्राप्त करते हैं। परिवार न्यायालय ने पिता को 2,500 रुपये प्रति माह भरण-पोषण देने और विवाह खर्च के लिए पाँच लाख रुपये देने का आदेश दिया था।
पिता ने इस आदेश को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट में याचिका (High Court Judgment India) दायर की थी। लेकिन अदालत ने पिता की अपील खारिज कर दी और निर्देश दिया कि वह नियमित रूप से भरण-पोषण की राशि देता रहे तथा पांच लाख रुपये की विवाह खर्च राशि तीन माह के भीतर जमा करे। कोर्ट ने अपने निर्णय में कहा कि विवाह भारतीय समाज में एक महत्वपूर्ण और सांस्कृतिक दायित्व है, इसलिए बेटी को विवाह में आर्थिक सहयोग देना पिता का दायित्व है, इससे वह पल्ला नहीं झाड़ सकता।
