सीजी भास्कर, 26 जुलाई : हाई कोर्ट के एक आदेश के बाद राज्य के न्यायिक व प्रशासनिक क्षेत्र में नई बहस छिड़ गई है। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने बाहरी राज्यों के लोगों के नाम नैनीताल की मतदाता सूची में शामिल होने से संबंधित मामले में पेश एडीएम (प्रशासन) विवेक राय के अंग्रेजी नहीं बोल सकने पर हैरानी जताई।
संबंधित अधिकारी की स्वीकारोक्ति के बाद राज्य निर्वाचन आयुक्त और मुख्य सचिव को यह जांच करने के आदेश दिए और पूछा है कि क्या अपर जिला मजिस्ट्रेट स्तर के किसी अधिकारी को, जिन्होंने न्यायालय में स्वीकार किया है कि वह अंग्रेजी नहीं बोल सकते, किसी कार्यकारी पद पर प्रभावी नियंत्रण सौंपा जा सकता है।
18 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश जी नरेंद्र व न्यायमूर्ति आलोक मेहरा की खंडपीठ में नैनीताल के बुढ़लाकोट ग्राम पंचायत की मतदाता सूची में बाहरी राज्यों के लोगों के नाम हटाने को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई हुई थी। मामले में एडीएम विवेक राय व कैंची धाम तहसील की एसडीएम मोनिका कोर्ट में पेश हुए थे। इसी दौरान कोर्ट ने एडीएम से जानकारी मांगी थी जिस पर एडीएम ने हिंदी में जवाब दिया था।
सुप्रीम कोर्ट में विशेष अनुमति याचिका दायर करे सरकार: जस्टिस पंत
सुप्रीम कोर्ट व नैनीताल हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त जस्टिस पीसी पंत ने इस निर्णय पर असहमति जताते हुए कहा कि देश के साथ ही उत्तराखंड की राजभाषा हिंदी है। संविधान के अनुच्छेद-348 के तहत सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के कामकाज की भाषा अंग्रेजी है, लेकिन राजभाषा को दरकिनार नहीं किया जा सकता।
उन्होंने कहा कि यदि कोई अधिकारी या याचिकाकर्ता हिंदीभाषी है तो उनकी मदद के लिए हाई कोर्ट में अनुवादक के आठ पद स्वीकृत हैं। दैनिक जागरण से बातचीत में जस्टिस पंत ने कहा कि राज्य सरकार को हाई कोर्ट के इस आदेश पर प्रमुख सचिव (न्याय) से सलाह लेने के बाद विशेष अनुमति याचिका दायर कर सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देनी चाहिए।
यह पूरी तरह संवैधानिक मामला है: कार्तिकेय
हाई कोर्ट के अधिवक्ता कार्तिकेय हरिगुप्ता ने कोर्ट के निर्णय का समर्थन करते हुए कहा कि यह पूरी तरह कानूनी मामला है। संविधान के अनुच्छेद-348 में साफ है कि संवैधानिक कोर्ट सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट की पहली भाषा अंग्रेजी है, संसद की भी पहली भाषा अंग्रेजी है। 1965 में केंद्रीय कैबिनेट की कमेटी ने तय किया कि संवैधानिक अदालतों की भाषा के मामले में चीफ जस्टिस आफ इंडिया से अनिवार्य रूप से परामर्श किया जाए।
इलाहाबाद हाई कोर्ट में हिंदी में याचिका दायर करने को मंजूरी दी। उत्तर प्रदेश सरकार ने इसे 1969 में प्रभावी किया। मध्य प्रदेश में 1971, पटना हाई कोर्ट में 1972 में हिंदी लागू हुई। राजस्थान हाई कोर्ट में भी हिंदी की अनुमति मिली है। उन्होंने भी माना कि उत्तराखंड में राज्यपाल चीफ जस्टिस से परामर्श के बाद हाई कोर्ट में हिंदी को लागू कर सकते हैं।