पाकिस्तान जिंदाबाद और जिहाद के समर्थन में पोस्ट साझा करने के आरोपी अंसार अहमद सिद्दीकी की जमानत याचिका इलाहाबाग हाई कोर्ट ने खारिज कर दी. कोर्ट ने टिप्पणी की कि आरोपी द्वारा किया गया कार्य न केवल भारत के संविधान और उसकी मूल भावनाओं का अपमान है, बल्कि यह देश की संप्रभुता और अखंडता को चुनौती देने जैसा है. आरोपी की उम्र 62 वर्ष है और उसकी उम्र से पता चलता है कि वह स्वतंत्र भारत में पैदा हुआ है. इसके बावजूद उसने ऐसा गैर-जिम्मेदाराना और राष्ट्रविरोधी व्यवहार किया.
अदालत ने संविधान के अनुच्छेद 21 में दी गई स्वतंत्रता का जिक्र करते हुए कहा, ऐसे कृत्य उस स्वतंत्रता के दायरे में नहीं आते जो किसी नागरिक को दी गई है.‘पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगाए थे’
साथ ही कोर्ट ने अनुच्छेद 51(ए) के अनुसार बताया कि प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है कि वह संविधान, राष्ट्रध्वज और राष्ट्रगान का सम्मान करे. उप खंड (सी) के अनुसार, भारत की एकता और अखंडता की रक्षा करे. आरोपी ने 3 मई को फेसबुक पर एक पोस्ट शेयर की थी, जिसमें कथित तौर पर जिहाद के प्रचार, पाकिस्तान जिंदाबाद के नारे और पाकिस्तानी भाइयों का समर्थन करने की अपील की गई थी. यह पोस्ट पहलगाम में हुए आतंकी हमले के बाद साझा की गई थी जिसमें 26 निर्दोष हिंदू मारे गए थे.
‘संवेदनशील समय में साझा की गई पोस्ट’
राज्य सरकार के वकील ने कहा कि यह पोस्ट न केवल संवेदनशील समय में साझा की गई, बल्कि इससे आतंकवादी कृत्यों को धार्मिक आधार पर समर्थन मिलता है मिलता प्रतीत होता है. आरोपी की ओर से वकील ने तर्क दिया कि वह 62 साल का है और उसका इलाज चल रहा है. हालांकि, इन दलीलों को खारिज करते हुए कोर्ट ने कहा कि वर्तमान परिस्थिति में आरोपी को जमानत देना उचित नहीं है. अदालत ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिए हैं कि वह मामले की सुनवाई तेजी से पूरी करे.
साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि राष्ट्रविरोधी मानसिकता वाले लोगों के खिलाफ न्यायपालिका को सख्त रुख अपनाने की आवश्यकता है, ताकि समाज में ऐसी प्रवृत्तियों पर लगाम लगाई जा सके. इस मामले में आरोपी अंसार अहमद सिद्दीकी के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता (BNS) की धारा 197 और 152 के तहत थाना छतारी, जिला बुलंदशहर में मुकदमा दर्ज किया गया है.