सीजी भास्कर, 15 सितंबर। अस्पतालों पर आम जनता अपने स्वास्थ्य (Baby Trafficking Case) और जीवन की सबसे बड़ी जिम्मेदारी सौंपती है। लेकिन जब वहीं पर मासूम जिंदगी के साथ सौदा किया जाए, तो भरोसे की नींव हिल जाती है। ऐसा ही एक चौंकाने वाला मामला सामने आया है जिसने पूरे इलाके को दहशत में डाल दिया। नर्स और दंपत्ति के इस खेल ने न केवल कानून की सीमाओं को तोड़ा बल्कि इंसानियत को भी शर्मसार कर दिया।
शुरुआत में मामला साधारण प्रतीत हुआ—एक महिला ने अस्पताल में बच्ची को जन्म दिया और उसे टीका लगाने के नाम पर स्टाफ ने अपने कब्जे में ले लिया। लेकिन जैसे-जैसे परतें खुलती गईं, कहानी ने भयावह मोड़ ले लिया। परिजनों को बच्ची की बीमारी और इलाज के खर्च का डर दिखाकर मासूम को कथित रूप से सौंप दिया गया। परिजन जब बार-बार पूछते तो उन्हें केवल बहलाया जाता। यही सस्पेंस धीरे-धीरे (Baby Trafficking Case) के रूप में सामने आया।
घटना का खुलासा तब हुआ जब पीड़ित पिता ने थककर थाने का रुख किया। उसने पुलिस को बताया कि उसकी पत्नी को प्रसव पीड़ा होने पर 28 अगस्त को सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में भर्ती कराया गया था, जहां बच्ची ने जन्म लिया। लेकिन बच्ची जन्म के कुछ ही घंटे बाद रहस्यमय तरीके से गायब कर दी गई। यही से पूरा (Baby Trafficking Case) आकार लेने लगा।
मामला जशपुर जिले के पत्थलगांव क्षेत्र का है। पिता ने बताया कि नर्स अनुपमा टोप्पो ने बच्ची को टीका लगाने के नाम पर ले गई और बाद में बीमारी का बहाना बनाकर कहा कि उसका इलाज महंगा है। इसी दौरान कोरबा जिले से आए दंपत्ति निशिकांत मिंज और सुमन वानी मिंज को बच्ची सौंप दी गई। बच्ची के स्वस्थ होने पर उसे लौटाने का वादा किया गया, लेकिन यह केवल झूठ निकला। बार-बार पूछताछ के बावजूद जब नर्स ने बहाने बनाए, तो अंततः पीड़ित ने पुलिस से शिकायत की।
शिकायत मिलते ही पत्थलगांव पुलिस हरकत में आई और किशोर न्याय अधिनियम की धारा 80 व 81 के तहत अपराध दर्ज किया। जांच में सामने आया कि बच्ची को कोरबा जिले के दर्री थाना क्षेत्र ले जाया गया था। पुलिस टीम ने वहां दबिश दी और बलगी रोड लाटा निवासी दंपत्ति से बच्ची को सुरक्षित बरामद किया। गोद लेने के वैध दस्तावेज न मिलने पर दोनों को गिरफ्तार कर जशपुर लाया गया। पूछताछ में सारा राज खुला और नर्स अनुपमा टोप्पो की गिरफ्तारी भी हो गई।
