सीजी भास्कर, 02 नवंबर। बीते चार दशक में माओवादी हिंसा के दंश से आदिवासी बहुल बस्तर की बर्बादी और हिंसा से मुक्ति की ओर बढ़ रहे बस्तरांचल के युवाओं में आ रही नई चमक को फिल्म ‘माटी (Bastar Movie Mati)’ में देखा जा सकता है। शांति की ओर बढ़ते बस्तर के कदम को यह फिल्म बखूबी दर्शाती है। छत्तीसगढ़ी बोली में निर्मित इस फिल्म में सभी कलाकार स्थानीय बस्तरिया हैं।
उल्लेखनीय है कि फिल्म में लगभग 40 ऐसे कलाकार भी शामिल हैं जो पहले माओवादी हिंसा में सक्रिय रहे और आत्मसमर्पण कर अब समाज की मुख्यधारा का हिस्सा बन चुके हैं। यह फिल्म 14 नवंबर को पूरे छत्तीसगढ़ में रिलीज होने जा रही है। शनिवार को प्रेस क्लब में आयोजित पत्रकारवार्ता में फिल्म के निर्माता संपत झा और निदेशक अविनाश प्रसाद ने फिल्म के कथानक और संदेश पर विस्तार से चर्चा की।
माओवाद की वास्तविकता को दिखाने का साहसिक प्रयास
निर्माता संपत झा ने बताया कि माओवाद की समस्या जैसे गंभीर विषय को मनोरंजन और सिनेमा (Bastar Movie Mati) के माध्यम से दिखाने का निर्णय आसान नहीं था।
वास्तविकता और प्रामाणिकता के उद्देश्य से कई आत्मसमर्पित माओवादियों से इस फिल्म में अभिनय करवाने का साहसिक निर्णय लिया गया। उन्होंने कहा कि “यह फिल्म छत्तीसगढ़, और विशेषकर बस्तर की माटी की खुशबू, बस्तरवासियों के दर्द, संघर्ष और उम्मीदों की कहानी है। ‘माटी’ केवल एक प्रेमकथा नहीं, बल्कि उस धरती की आत्मा की पुकार है जिसने दशकों तक हिंसा, संघर्ष और आशा के बीच खुद को संभाला है।”
बस्तर की अनकही कहानियों को मिलेगी आवाज
निर्देशक अविनाश प्रसाद का कहना था कि दशकों से जारी माओवादी हिंसा ने न जाने कितने मासूमों की जान ली, कितने जवान शहीद हुए और कितने निर्दोष ग्रामीण अपनी ही मिट्टी पर बेघर हो गए। उन्होंने कहा कि ‘माटी (Bastar Movie Mati)’ उन अनकही कहानियों को स्वर देती है जिनका इतिहास में कोई ज़िक्र नहीं, पर जो बस्तर की वादियों, जंगलों, नदियों और हर बस्तरवासी के दिल में दर्ज हैं। यह फिल्म केवल हिंसा का चित्रण नहीं करती, बल्कि उस बदलाव की भी कहानी है जो अब बस्तर के युवाओं और समाज में दिखाई दे रहा है।
सरकारी कर्मचारियों ने भी किया अभिनय
फिल्म के कई कलाकार शासकीय सेवक हैं। इनमें महेन्द्र ठाकुर, भूमिका साहा, डॉ. पूर्णिमा सरोज, निर्मल सिंह राजपूत, श्रीधर राव, आशुतोष तिवारी, राजेश महंती, भूमिका निषाद आदि मुख्य भूमिकाओं में नजर आएंगे। निर्माताओं का कहना है कि स्थानीय कलाकारों की भागीदारी से न केवल फिल्म की सच्चाई बरकरार रही, बल्कि बस्तर के लोगों को अपनी ही कहानी पर्दे पर देखने का अवसर भी मिलेगा।
