सीजी भास्कर, 10 अगस्त
रायपुर
छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने औद्योगिक भांग की नियंत्रित शोधात्मक खेती की अनुमति के लिए दायर पुनर्विचार याचिका को खारिज कर दिया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति बी. डी. गुरु की खंडपीठ ने कहा कि यह मामला जनहित याचिका (PIL) के दायरे में नहीं आता और पहले दिए गए आदेश में कोई कानूनी त्रुटि नहीं पाई गई।
याचिकाकर्ता की दलील
- याचिकाकर्ता डॉ. सचिन अशोक काले (तिलकनगर, बिलासपुर) ने खुद कोर्ट में पेश होकर कहा कि उनका उद्देश्य भांग का सेवन वैध कराना नहीं, बल्कि औद्योगिक और औषधीय उपयोग पर रिसर्च करना है।
- खेती निजी जमीन पर नहीं, बल्कि कृषि कॉलेज या दूरस्थ वन क्षेत्र में करने का प्रस्ताव दिया।
- दावा किया कि सफल रिसर्च से किसानों को एक नया आर्थिक विकल्प मिल सकता है।
कोर्ट का रुख
- पुनर्विचार याचिका केवल उसी स्थिति में स्वीकार होती है, जब पहले के आदेश में रिकॉर्ड पर साफ दिखने वाली गलती हो।
- यहां पहले जैसी ही बातें दोबारा उठाई गईं, जिन पर पहले ही निर्णय दिया जा चुका है।
- कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पुनर्विचार अपील का विकल्प नहीं है और इसका दायरा बेहद सीमित है।
- याचिकाकर्ता अगर फैसले से असंतुष्ट हैं, तो इसके लिए अन्य कानूनी रास्ते उपलब्ध हैं।
सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला
हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के पुराने निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि पुनर्विचार का मकसद अपील सुनना नहीं, बल्कि सिर्फ स्पष्ट त्रुटियों को सुधारना है।
इस मामले में ऐसी कोई त्रुटि नहीं पाई गई, इसलिए याचिका खारिज कर दी गई।
राज्य सरकार का पक्ष
- सरकारी वकील ने कहा कि पहले भी यह मामला PIL के रूप में खारिज हो चुका है।
- याचिका का स्वरूप व्यक्तिगत हित से जुड़ा प्रतीत होता है, इसे जनहित नहीं माना जा सकता।