नई दिल्ली। राज्यपाल और राष्ट्रपति के पास भेजे गए विधानसभा से पास बिलों पर मंजूरी की समय-सीमा तय करने को लेकर दायर याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट में लगातार सातवें दिन बुधवार को सुनवाई हुई।
इस दौरान पश्चिम बंगाल, तेलंगाना और हिमाचल प्रदेश की सरकारों ने राज्यपालों की विवेकाधिकार शक्ति पर सवाल उठाए।
राज्यों का तर्क: गवर्नर सिर्फ औपचारिक प्रमुख
राज्यों ने दलील दी कि कानून बनाने का अधिकार विधानसभा के पास है और राज्यपाल इसमें हस्तक्षेप नहीं कर सकते। वे केवल औपचारिक प्रमुख होते हैं। अदालत ने भी मंगलवार को टिप्पणी की थी कि गवर्नर किसी विधेयक को अनिश्चितकाल तक लंबित नहीं रख सकते।
सुप्रीम कोर्ट की बेंच
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई, जस्टिस सूर्यकांत, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस पी.एस. नरसिम्हा और जस्टिस ए.एस. चंदुरकर की पांच सदस्यीय बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही है। अगली सुनवाई 9 सितंबर को होगी।
पश्चिम बंगाल का पक्ष
राज्य के वकील कपिल सिब्बल ने कहा,
“अगर विधानसभा से पास बिल गवर्नर को भेजा जाता है तो उन्हें उस पर हस्ताक्षर करना ही होगा। संविधान की धारा-200 में ‘संतोष’ जैसी कोई शर्त नहीं है। या तो वे बिल पर साइन करें या राष्ट्रपति को भेज दें। लगातार अटकाना संविधान और लोकतंत्र की भावना के खिलाफ है।”
हिमाचल प्रदेश का तर्क
हिमाचल सरकार के वकील आनंद शर्मा ने कहा कि भारत का संघीय ढांचा संविधान का अहम हिस्सा है। अगर गवर्नर बिल रोकते रहेंगे तो केंद्र और राज्यों के बीच टकराव बढ़ेगा, जो लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।
उन्होंने कहा कि गवर्नर का पद जनता की इच्छा को नकारने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता।
कर्नाटक का पक्ष
कर्नाटक सरकार की ओर से वकील गोपाल सुब्रमण्यम ने कहा कि राज्य में ‘डायार्की’ यानी दोहरी सरकार नहीं हो सकती। गवर्नर को हमेशा मंत्रिपरिषद की सलाह पर ही काम करना होगा। उन्होंने स्पष्ट किया कि गवर्नर को सिर्फ दो स्थितियों में विवेकाधिकार है—
- अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति को रिपोर्ट भेजने में।
- जब कोई बिल हाईकोर्ट की शक्तियों को प्रभावित करता हो।
इनके अलावा उनके पास कोई स्वतंत्र शक्ति नहीं है।
केंद्र का रुख
केंद्र सरकार ने तर्क दिया था कि राज्य सरकारें इस मामले में सुप्रीम कोर्ट नहीं जा सकतीं, क्योंकि राष्ट्रपति और राज्यपाल के फैसले न्यायिक समीक्षा के दायरे में नहीं आते।
वहीं, अदालत ने पहले कहा था कि अगर गवर्नर अनिश्चितकाल तक बिल रोके रखें तो ‘जल्दी’ शब्द का महत्व ही खत्म हो जाएगा।
राष्ट्रपति का सवाल
मई 2024 में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से पूछा था कि क्या अदालत गवर्नर और राष्ट्रपति को बिलों पर फैसला करने के लिए कोई समय-सीमा तय कर सकती है। इसी सवाल के बाद यह सुनवाई शुरू हुई है।