बिलासपुर, 8 अगस्त 2025 — छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने प्रदेश के न्यायिक क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम उठाते हुए तीन प्रतिष्ठित अधिवक्ताओं को वरिष्ठ अधिवक्ता (Senior Advocate) के रूप में नामित किया है। इस निर्णय को फुल कोर्ट की मंजूरी प्राप्त हुई है और यह आदेश तत्काल प्रभाव से लागू कर दिया गया है।
जिन अधिवक्ताओं को वरिष्ठ दर्जा मिला है:
- अशोक कुमार वर्मा
 - मनोज विष्णनाथ परांजपे
 - सुनील ओटवानी
 
सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुरूप हुई नियुक्ति
इस चयन प्रक्रिया का संचालन अधिवक्ता अधिनियम, 1961 की धारा 16 और छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट (वरिष्ठ अधिवक्ताओं के नामांकन) नियम, 2018 के तहत किया गया। प्रक्रिया पूरी तरह से सुप्रीम कोर्ट के इंदिरा जयसिंह बनाम भारत संघ केस (2017) के आदेशों के अनुरूप रही, जिसमें वरिष्ठ अधिवक्ताओं की नियुक्ति के लिए पारदर्शी और योग्यता आधारित प्रणाली अपनाने के निर्देश दिए गए थे।

रजिस्ट्रार जनरल ने जारी की अधिसूचना
रजिस्ट्रार जनरल मनीष कुमार ठाकुर द्वारा अधिसूचना क्रमांक 15708/एससीडीएसए/2025 के माध्यम से इन नामों की आधिकारिक घोषणा की गई। अधिसूचना में स्पष्ट किया गया कि यह नामांकन फुल कोर्ट द्वारा विधिक अनुभव, आचरण, व्यावसायिक नैतिकता और विधि क्षेत्र में योगदान के आधार पर अनुमोदित किया गया है।
वरिष्ठ अधिवक्ता की भूमिका: केवल सम्मान नहीं, जिम्मेदारी भी
वरिष्ठ अधिवक्ताओं को अदालत में कुछ विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। वे आमतौर पर केवल तर्क रखते हैं, जबकि तथ्यों की प्रस्तुति उनके कनिष्ठ वकीलों द्वारा की जाती है। उनकी भूमिका न्यायिक गुणवत्ता और बहस के स्तर को ऊंचा करने में अहम मानी जाती है।
हाईकोर्ट अधिवक्ता अमित सोनी ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा,
“वरिष्ठ अधिवक्ता की उपाधि केवल सम्मान का प्रतीक नहीं, बल्कि विधिक प्रतिभा और अनुभव का प्रमाण है। यह अन्य वकीलों के लिए प्रेरणा का स्रोत है।”
चयन प्रक्रिया बनी प्रेरणा
वरिष्ठ अधिवक्ता बनने की प्रक्रिया में केवल पेशेवर अनुभव ही नहीं, बल्कि समाज और न्यायालय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, आचरण, और बार एसोसिएशन की राय को भी अहमियत दी जाती है। यह चयन प्रणाली युवा अधिवक्ताओं के लिए एक प्रेरणा है, जिससे वे और अधिक निष्ठा एवं समर्पण के साथ कार्य कर सकें।
छत्तीसगढ़ बार एसोसिएशन में खुशी की लहर
तीनों अधिवक्ताओं को वरिष्ठ दर्जा मिलने से प्रदेश के अधिवक्ता समुदाय में उत्साह है। वकीलों का मानना है कि इससे न्यायिक व्यवस्था में विश्वास बढ़ेगा और अन्य योग्य अधिवक्ताओं को भी भविष्य में यह उपलब्धि पाने की प्रेरणा मिलेगी।
