सीजी भास्कर, 28 जुलाई |
रायपुर। छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने एक कांस्टेबल की पुनरीक्षण याचिका खारिज करते हुए स्पष्ट किया है कि बेटी के भरण-पोषण से बचने का कोई आधार नहीं बनता, चाहे पिता HIV संक्रमित ही क्यों न हो। अदालत ने दो टूक कहा कि बेटी की देखभाल और पालन-पोषण पिता की नैतिक और कानूनी जिम्मेदारी है।
कांस्टेबल ने क्या दलील दी?
कोण्डागांव में पदस्थ एक कांस्टेबल ने हाई कोर्ट में दलील दी कि वह HIV पॉजिटिव है और उसकी स्थिति गंभीर है। इलाज में भारी खर्च आता है, इसलिए वह भरण-पोषण देने की स्थिति में नहीं है। इतना ही नहीं, उसने यह दावा भी किया कि जिस बच्ची के लिए उसे पैसे देने का आदेश दिया गया है, वह उसकी संतान ही नहीं है।
मामला कैसे शुरू हुआ?
कांस्टेबल की पत्नी ने फैमिली कोर्ट, अंबिकापुर में धारा 125 सीआरपीसी के तहत याचिका दायर की थी, जिसमें उसने 30,000 रुपये प्रतिमाह भरण-पोषण की मांग की थी। उसने आरोप लगाया कि पति ने शारीरिक प्रताड़ना दी, घर से निकाल दिया और बेटी की देखभाल से भी किनारा कर लिया।
फैमिली कोर्ट का आदेश
फैमिली कोर्ट ने 9 जून 2025 को फैसला सुनाते हुए पत्नी की मांग को अस्वीकार कर दिया, लेकिन बेटी के पक्ष में ₹5,000 प्रतिमाह भरण-पोषण देने का आदेश पारित किया। कोर्ट ने कहा कि बेटी की शिक्षा और परवरिश के लिए यह राशि जरूरी है।
हाई कोर्ट की टिप्पणी
मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा की एकल पीठ ने कहा कि फैमिली कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलों और साक्ष्यों को सही ढंग से परखा। याचिकाकर्ता यह साबित नहीं कर सका कि बच्ची उसकी संतान नहीं है या भरण-पोषण देने से उसे कोई असाधारण परेशानी होगी।
फैसला क्या आया?
हाई कोर्ट ने कहा कि एचआईवी संक्रमित होना भरण-पोषण से मुक्त होने का कारण नहीं बन सकता। अदालत ने कांस्टेबल की पुनरीक्षण याचिका खारिज कर दी और फैमिली कोर्ट के आदेश को जारी रखने का निर्देश दिया।