सीजी भास्कर, 24 अक्टूबर। कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष में आने वाली एकादशी तिथि (Devuthani Ekadashi 2025 Date) को देवोत्थान एकादशी कहा जाता है। ऐसा माना जाता है कि चार महीने तक योग निद्रा में रहने के बाद भगवान विष्णु अपनी योग निद्रा से जागते हैं। विष्णु भगवान के जागने के बाद सभी मांगलिक और शुभ कार्यों की शुरुआत होती है। देवोत्थान एकादशी को देव प्रबोधिनी एकादशी के नाम से भी जाना जाता है।
हिंदू धर्म में (Devuthani Ekadashi 2025 Date) देवउठनी एकादशी का विशेष महत्व है। इस दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की आराधना की जाती है। इसे देवोत्थान एकादशी या देवुत्थान एकादशी भी कहा जाता है। इसका अर्थ है — देवताओं का उठना। श्रीहरि चातुर्मास (चार माह की निद्रा) के बाद इस दिन जागते हैं।
इसी दिन से सभी शुभ कार्य जैसे शादी, सगाई, मुंडन आदि की शुरुआत होती है। चातुर्मास के दौरान ये सभी कार्य वर्जित रहते हैं। (Devuthani Ekadashi 2025 Date) द्रिक पंचांग के अनुसार, इस बार देवउठनी एकादशी 1 नवंबर 2025, शनिवार को मनाई जाएगी।
हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को देवउठनी एकादशी का व्रत रखा जाता है। इस बार एकादशी की तिथि 1 नवंबर को सुबह 9 बजकर 11 मिनट से शुरू होकर 2 नवंबर को सुबह 7 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी। उदयातिथि के अनुसार देवउठनी एकादशी 1 नवंबर को ही मनाई जाएगी। व्रत का पारण 2 नवंबर को दोपहर 1 बजकर 11 मिनट से लेकर 3 बजकर 23 मिनट तक किया जाएगा। (Devuthani Ekadashi 2025 Date)
देवउठनी एकादशी पूजन विधि (Devuthani Ekadashi Pujan Vidhi)
देवउठनी एकादशी के दिन घर में गन्ने का मंडप बनाया जाता है और बीच में रंगोली या सुंदर चौक सजाया जाता है। चौक के मध्य में भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। उनके चरणों के चिह्न बनाना और उन्हें ढककर रखना शुभ माना गया है। इसके बाद भगवान को गन्ना, सिंघाड़ा, फल, मिठाई और पंचामृत का भोग लगाया जाता है। अंत में घी का दीपक जलाकर रातभर जलने दिया जाता है। (Devuthani Ekadashi 2025 Date)
एकादशी पर न करें ये कार्य
इस दिन चावल खाना वर्जित है। मांसाहार और तामसिक भोजन से भी दूर रहें।
व्रतधारी व्यक्ति लकड़ी के दातून या टूथपेस्ट से दांत साफ न करें, क्योंकि इस दिन पेड़-पौधों को नुकसान पहुंचाना अशुभ माना जाता है।
तुलसी तोड़ना वर्जित है, क्योंकि तुलसी देवी भगवान विष्णु की प्रिय हैं।
भोग लगाने के लिए पहले से तुलसी तोड़ लें, लेकिन अर्पित तुलसी को स्वयं न ग्रहण करें।
गोभी, गाजर, पालक, कुलफा साग, शलजम आदि का सेवन व्रत के दौरान नहीं करना चाहिए।
