सीजी भास्कर, 12 नवंबर। छत्तीसगढ़ में माओवादियों के खिलाफ चल रहे आक्रामक अभियानों के बीच अब यह जानकारी सामने आई है कि शीर्ष माओवादी कमांडर माड़वी हिड़मा (Hidma News) वर्तमान में तेलंगाना के घने जंगलों में छिपा हुआ है। सुरक्षा एजेंसियों को हाल ही में उसकी उपस्थिति कर्रेगुट्टा की पहाड़ियों के आसपास दर्ज हुई है। हिड़मा, जो माओवादी संगठन की बटालियन नंबर-1 का प्रभारी और केंद्रीय समिति का सदस्य है, लंबे समय से सुरक्षा बलों के रडार पर सबसे वांछित नक्सली के रूप में बना हुआ है।
बस्तर में कमजोर हुआ माओवादी नेटवर्क
सुरक्षा एजेंसियों के मुताबिक, शीर्ष माओवादी नेताओं बसवा राजू, के. रामचंद्र रेड्डी (गुड्सा उसेंडी), के. सत्यनारायण रेड्डी (कोसा) की मौत और भूपति, रूपेश, सुजाता और ककराला सुनीता जैसे वरिष्ठ कैडरों के आत्मसमर्पण के बाद बस्तर क्षेत्र में माओवादी संगठन की शक्ति कमजोर हुई है। अब हिड़मा ही संगठन का अंतिम बड़ा चेहरा बचा है, जो दक्षिण बस्तर में सक्रिय था और अब तेलंगाना की सीमा के पार जाकर छिपा है।
(Hidma News) सुरक्षा बलों का संयुक्त अभियान तैयार
सूत्रों के अनुसार, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना पुलिस के बीच इंटर स्टेट को-ऑर्डिनेशन को लेकर रणनीति तैयार की जा रही है। दोनों राज्यों की फोर्स जल्द ही संयुक्त सर्च और कॉम्बिंग ऑपरेशन शुरू करेगी, ताकि हिड़मा और उसके शेष दस्तों की गतिविधियों पर रोक लगाई जा सके। सुरक्षा अधिकारियों ने बताया कि हिड़मा की वापसी की संभावना बेहद कम है, लेकिन फोर्स उसके नेटवर्क को तोड़ने के लिए लगातार दबाव बनाए हुए है।
(Hidma News) झीरम घाटी हमले से जुड़ा है नाम
हिड़मा का नाम पहली बार वर्ष 2013 में हुए झीरम घाटी हमले के बाद सामने आया था। इस हमले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं समेत 30 से अधिक लोगों की मौत हुई थी। तब से हिड़मा माओवादी संगठन का चेहरा और रणनीतिक कमांडर बन गया। पिछले वर्ष उसे केंद्रीय समिति का सदस्य बनाया गया, जिससे उसकी स्थिति संगठन में और मजबूत हो गई। माओवादी मामलों के जानकार विकास तिवारी के अनुसार, हिड़मा पिछले एक दशक से माओवादी आंदोलन का सबसे प्रभावशाली चेहरा बना हुआ है। वर्तमान में उस पर ₹45 लाख का इनाम घोषित है। वह बस्तर में संगठन के कई हमलों की योजना बनाने और फोर्स पर घात लगाकर हमले करने के लिए कुख्यात रहा है।
बस्तर में हिड़मा का प्रभाव घटा
सुरक्षा एजेंसियों का कहना है कि गांव स्तर पर लागू समर्पण नीति और सघन सर्च अभियान के कारण अब हिड़मा को स्थानीय समर्थन नहीं मिल रहा। कई माओवादी सहयोगी गांव छोड़कर जा चुके हैं। हिड़मा की गतिविधियों को देखते हुए छत्तीसगढ़-तेलंगाना सीमा क्षेत्र में अतिरिक्त जवानों की तैनाती की गई है। फोर्स ने जंगल इलाकों में ड्रोन सर्विलांस और इंटेलिजेंस इनपुट सिस्टम को और मजबूत किया है।
