सीजी भास्कर 30 जुलाई
ग्वालियर: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की ग्वालियर बेंच ने 2008 की पटवारी भर्ती को लेकर बड़ा और ऐतिहासिक निर्णय सुनाया है। कोर्ट ने साफ कहा है कि यदि कोई उम्मीदवार सामान्य वर्ग (जनरल कैटेगरी) की मेरिट में चयनित होता है, तो उसे आरक्षित कोटे (जैसे OBC या SC/ST) में समायोजित करना पूरी तरह गैरकानूनी है। कोर्ट ने इस फैसले के साथ राज्य सरकार को निर्देश भी दिया है कि दतिया निवासी याचिकाकर्ता धर्मेंद्र सिंह सिकरवार को 6 सप्ताह के भीतर नियुक्ति दी जाए।
क्या था पूरा मामला?
धर्मेंद्र सिंह सिकरवार ने 2008 की पटवारी भर्ती परीक्षा में OBC (विकलांग) श्रेणी से आवेदन किया था और परीक्षा पास करने के बाद उन्होंने प्रशिक्षण भी पूरा कर लिया था। लेकिन इसके बावजूद उन्हें नियुक्ति नहीं दी गई।
सरकारी पक्ष ने तर्क दिया कि उस पद पर पहले ही किसी अन्य उम्मीदवार की नियुक्ति हो चुकी है। लेकिन जांच में सामने आया कि जिस उम्मीदवार की नियुक्ति की गई, उसने सामान्य श्रेणी से आवेदन किया था और जनरल मेरिट में पास भी हुआ था — बावजूद इसके उसे OBC कोटे में समायोजित कर दिया गया। इससे धर्मेंद्र सिंह का अधिकार छिन गया।
कोर्ट का दो-टूक फैसला
हाईकोर्ट ने इसे साफ तौर पर 1994 के आरक्षण अधिनियम का उल्लंघन बताया। कोर्ट ने कहा:
“अगर कोई उम्मीदवार सामान्य वर्ग की मेरिट में आ जाता है, तो उसे उसी में रखा जाना चाहिए। उसे आरक्षित वर्ग में डालना न केवल गलत है, बल्कि इससे आरक्षित वर्ग के अन्य योग्य उम्मीदवारों का भी हक मारा जाता है।”
क्या है इस फैसले का असर?
इस फैसले से ये साफ हो गया है कि आरक्षण नीति के गलत इस्तेमाल पर अब न्यायपालिका की पैनी नजर है। साथ ही, भर्ती प्रक्रियाओं में पारदर्शिता को लेकर सरकारों को भी चेताया गया है कि वे नियमों से खिलवाड़ न करें।