सीजी भास्कर, 17 जुलाई |
बिलासपुर |
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने तलाक से जुड़े एक अहम फैसले में कहा है कि किसी पुरुष पर बिना मेडिकल प्रमाण के नपुंसकता का आरोप लगाना मानसिक अत्याचार की श्रेणी में आता है। कोर्ट ने इसे वैवाहिक क्रूरता मानते हुए पति को तलाक की मंजूरी दे दी है।
यह मामला जांजगीर-चांपा जिले का है, जहां पति-पत्नी के बीच वर्षों से विवाद चल रहा था। फैमिली कोर्ट ने पहले तलाक याचिका खारिज की थी, लेकिन हाईकोर्ट ने उस फैसले को गलत ठहराते हुए पलट दिया।
क्या है मामला?
2013 में बलरामपुर की एक महिला की शादी जांजगीर-चांपा निवासी एक शिक्षक से हुई थी। पति की पोस्टिंग बैकुंठपुर की एक कॉलरी में थी, जबकि पत्नी आंगनबाड़ी कार्यकर्ता थी।
शादी के कुछ वर्षों बाद ही रिश्तों में दरार आने लगी। पत्नी ने नौकरी छोड़ने या ट्रांसफर की मांग शुरू कर दी, लेकिन जब ऐसा नहीं हुआ, तो दोनों के बीच तनाव बढ़ता गया और 2017 से वे अलग रहने लगे।
पत्नी के आरोप और फैमिली कोर्ट का फैसला:
पति ने 2022 में फैमिली कोर्ट में तलाक की याचिका दाखिल की। सुनवाई के दौरान पत्नी ने पति पर नपुंसक होने का आरोप लगाया, लेकिन इस दावे के पक्ष में कोई मेडिकल रिपोर्ट नहीं दी।
साथ ही, उसने पति पर एक पड़ोसी महिला से अवैध संबंध का आरोप भी लगाया।
फैमिली कोर्ट ने इन दलीलों को पर्याप्त मानते हुए तलाक देने से इनकार कर दिया।
हाईकोर्ट का हस्तक्षेप:
पति ने फैमिली कोर्ट के आदेश को बिलासपुर हाईकोर्ट में चुनौती दी।
उसने बताया कि 7 वर्षों से दोनों अलग रह रहे हैं और पत्नी झूठे आरोप लगाकर उसे मानसिक रूप से प्रताड़ित करती है।
कोर्ट में यह भी बताया गया कि रिश्तों को सुधारने की कोशिशें की गईं, सामाजिक बैठकें बुलाई गईं, लेकिन पत्नी ने हर सुलह प्रयास को नकारात्मक रूप से लिया और रिश्तों में और जहर घोल दिया।
हाईकोर्ट का निर्णय:
हाईकोर्ट ने माना कि:
- नपुंसकता का झूठा आरोप मानसिक क्रूरता है, विशेष रूप से जब उसका कोई मेडिकल आधार नहीं हो।
- बिना प्रमाण के लगाए गए गंभीर आरोप पति की प्रतिष्ठा और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करते हैं।
- ऐसे रिश्ते को कानूनी रूप से जीवित नहीं रखा जा सकता।
अतः कोर्ट ने तलाक को मंजूरी दी और फैमिली कोर्ट के आदेश को त्रुटिपूर्ण बताया।