सीजी भास्कर, 18 दिसंबर | Highway Encroachment Case : बिलासपुर–रायपुर नेशनल हाईवे के किनारे संचालित ढाबों और शराब दुकान को लेकर जारी अदालती निर्देशों के पालन में ढिलाई पर हाईकोर्ट ने कड़ा रुख अपनाया है। डिवीजन बेंच ने साफ कहा कि आदेश और शपथ पत्र के बावजूद ज़मीनी कार्रवाई का अभाव प्रशासनिक उदासीनता का संकेत देता है, जिसे नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता।
शपथ पत्र बनाम ज़मीनी हकीकत
अदालत ने टिप्पणी की कि लिखित आश्वासन और समय-सीमा तय होने के बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है। ऐसे मामलों में “काग़ज़ी कार्रवाई” से आगे बढ़कर ठोस कदम उठाने की ज़िम्मेदारी अधिकारियों की होती है—जो यहां दिखाई नहीं दे रही।
सरकारी ज़मीन पर ढाबा, हटाने का आदेश लंबित
मामला उस ढाबे से जुड़ा है, जो मुंगेली जिले के सरगांव क्षेत्र में हाईवे किनारे सरकारी भूमि पर बना बताया गया है। तहसील स्तर से बेदखली आदेश जारी होने और संचालक द्वारा तय समय में स्थान खाली करने के शपथ पत्र के बावजूद स्थल पर बदलाव नहीं हुआ, जिससे अदालत की नाराज़गी बढ़ी।
शराब दुकान शिफ्टिंग का फैसला, अमल शून्य
इसी क्रम में नगर क्षेत्र की सड़क किनारे चल रही शराब दुकान को अन्यत्र स्थानांतरित करने का निर्णय भी काग़ज़ों तक सीमित रह गया। किराये के भवन के लिए नोटिस जारी होने के बाद भी दुकान यथावत रहने से सुरक्षा और यातायात से जुड़े सवाल खड़े हुए हैं।
कोर्ट कमिश्नर की रिपोर्ट ने खोली पोल
सुनवाई के दौरान कोर्ट कमिश्नर ने अवगत कराया कि पूर्व निर्देशों के बाद भी न तो ढाबा हटाया गया और न ही दुकान शिफ्ट हुई। राज्य पक्ष ने प्रक्रिया जारी होने का हवाला दिया, लेकिन अदालत ने इसे पर्याप्त नहीं माना।
मुख्य सचिव से मांगा गया जवाब, तय हुई अगली सुनवाई
डिवीजन बेंच ने अब मुख्य सचिव को शपथ पत्र दाख़िल कर यह स्पष्ट करने का निर्देश दिया है कि तय समय में कार्रवाई क्यों नहीं हो सकी। अदालत ने संकेत दिए कि अगली सुनवाई में जवाबदेही तय हो सकती है, और मामले को 19 दिसंबर को पुनः सूचीबद्ध किया गया है।


