सीजी भास्कर, 02 जुलाई| Indian Court Punishment Without FIR : पंचायत चुनाव की रंजिश में 12 वर्ष पहले किसान पर हुए जानलेवा हमले में अदालत ने जिले में पहली बार ऐतिहासिक कार्रवाई की है। घटना की एफआइआर दर्ज नहीं थी और विवेचना भी नहीं हुई, लेकिन अदालत ने जानलेवा हमले के आरोपित पिता और उसके चार बेटों को सात साल कैद की सजा सुनाई है।
उत्तर प्रदेश में कन्नौज जिले के गुरौली गांव निवासी बाबू खां ने 15 जुलाई 2013 को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (द्वितीय) के यहां परिवाद दायर किया था। इसमें बताया था कि 14 जुलाई की सुबह पंचायत चुनाव की रंजिश में पड़ोसी कमालुद्दीन ने अपने पुत्र नाजिम, शोएब, राजू और कादिर के साथ मिलकर उन पर चाकू से हमला कर घायल कर दिया।
जान से मारने की नीयत में उस पर तमंचे से फायरिंग कर दी है। इससे शरीर में छर्रे पर भी लगे हैं। रिपोर्ट दर्ज कराने के लिए ठठिया थाना और एसपी कार्यालय के चक्कर (Indian Court Punishment Without FIR)लगाए। शरीर में कई जख्म देखने के बाद भी पुलिस ने राजनीतिक दबाव में न तो एफआइआर दर्ज की और न ही मेडिकल परीक्षण कराया।
इससे न्यायालय ने वारदात का स्वयं संज्ञान लिया और घायल का मेडिकल परीक्षण कराया। न्यायालय ने 156 (3) के तहत परिवाद पंजीकृत किया। छह मार्च 2014 को अदालत ने समन भेजकर आरोपितों को तलब किया।
मेडिकल परीक्षण के आधार पर 30 जून 2025 को अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश (द्वितीय) लोकेश वरुण ने कमालुद्दीन, उसके बेटे नाजिम, शोएब, राजू और कादिर को सात साल की कैद और 32,500 रुपये का अर्थदंड लगाया। शासकीय अधिवक्ता कमलेश मौर्य ने बताया कि पीड़ित पर हुए जानलेवा हमले में पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज नहीं की थी।
शरीर पर कई जख्म थे। इससे न्यायालय ने स्वयं वारदात का संज्ञान (Indian Court Punishment Without FIR)लिया। मेडिकल रिपोर्ट और साक्ष्यों के आधार पर जिले में पहली बार बगैर एफआइआर और विवेचना के जानलेवा हमले में अभियुक्तों को सजा सुनाई है।
अधिवक्ता शिवाकांत दीक्षित ने बताया कि अगर पुलिस एफआइआर नहीं दर्ज करती तो अदालत में परिवाद दर्ज कराया जा सकता है। इस प्रक्रिया में अदालत में पहले पीड़ित पक्ष फिर आरोपित पक्ष के बयान दर्ज करती है। इसके बाद मजिस्ट्रेट तय करते हैं कि मुकदमा चलाने लायक है या नहीं। सुनवाई के बाद अदालत सजा दे सकती है।