सीजी भास्कर, 29 जुलाई |
रायपुर: छत्तीसगढ़ के बहुचर्चित शराब घोटाले में फंसे कारोबारी अनवर ढेबर को एक बार फिर झटका लगा है। राज्य के हाईकोर्ट ने उनकी वह याचिका खारिज कर दी है जिसमें उन्होंने ACB (Anti Corruption Bureau) और EOW (Economic Offenses Wing) द्वारा की गई गिरफ्तारी को अवैध बताते हुए FIR रद्द करने की मांग की थी।
हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि अनवर ढेबर की गिरफ्तारी विधिसम्मत है और घोटाले से जुड़े सभी आरोप गंभीर प्रकृति के हैं। साथ ही कोर्ट ने इस घोटाले में सरकार को करोड़ों का राजस्व नुकसान होने का हवाला भी दिया।
क्या है छत्तीसगढ़ शराब घोटाले की असली तस्वीर?
यह मामला ₹2000 करोड़ से अधिक के कथित घोटाले से जुड़ा है, जिसमें अवैध सिंडिकेट बनाकर सरकारी शराब दुकानों से डुप्लीकेट होलोग्राम लगाकर नकली शराब बेची गई। ED की जांच रिपोर्ट के आधार पर ACB ने मामला दर्ज किया है।
ED की रिपोर्ट के मुताबिक, इस घोटाले को पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के कार्यकाल में IAS अनिल टुटेजा, आबकारी विभाग के एमडी एपी त्रिपाठी और कारोबारी अनवर ढेबर ने मिलकर अंजाम दिया।
याचिका में क्या था अनवर ढेबर का दावा?
अनवर ने कोर्ट में याचिका दाखिल कर कहा था कि:
- उन्हें बिना पूर्व सूचना हिरासत में लिया गया।
- परिवार को सूचना नहीं दी गई (अनुच्छेद 21 और 22 के उल्लंघन का आरोप)।
- गिरफ्तारी का पंचनामा और केस डायरी की कॉपी नहीं दी गई।
- पुलिस रिमांड आदेशों को रद्द किया जाए।
हालांकि, कोर्ट ने इन दलीलों को ठुकराते हुए कहा कि गिरफ्तारी सभी कानूनी प्रक्रियाओं का पालन कर की गई थी। कोर्ट पहले ही उनकी दो जमानत याचिकाएं खारिज कर चुका है।
कैसे रचा गया था सिंडिकेट?
- फरवरी 2019, होटल वेलिंगटन, रायपुर में मीटिंग
- कारोबारी अनवर ढेबर ने 3 प्रमुख डिस्टलरी मालिकों को बुलाया
- तय हुआ कि प्रति पेटी शराब पर कमीशन लिया जाएगा
- सिंडिकेट के पैसों को A, B और C तीन हिस्सों में बांटा गया
- इसके एवज में शराब की दरें बढ़ाने का लालच दिया गया
अब तक 13 से अधिक गिरफ्तारी
इस घोटाले में अब तक जिन प्रमुख लोगों की गिरफ्तारी हो चुकी है उनमें शामिल हैं:
- पूर्व आबकारी मंत्री कवासी लखमा
- IAS अधिकारी अरुणपति त्रिपाठी
- कारोबारी अनवर ढेबर
- अनुराग द्विवेदी, त्रिलोक सिंह ढिल्लन, अमित सिंह
- सुनील दत्त, दिलीप टुटेजा, दीपक दुआरी
सरकार की दलील पर हाईकोर्ट की मोहर
राज्य सरकार की ओर से कोर्ट में बताया गया कि शराब दुकानों से नकली होलोग्राम के ज़रिए शराब बेचना एक गंभीर आर्थिक अपराध है। इस कारण न केवल राजस्व का नुकसान हुआ, बल्कि जनहित भी प्रभावित हुआ है। इसी आधार पर कोर्ट ने याचिका को खारिज कर दिया।