सीजी भास्कर, 22 जून। भगवान जगन्नाथ स्वामी मंदिर में आज के दिन सुबह भगवान के स्नान यात्रा की रस्म अदायगी की गई और इसके बाद ऐतिहासिक रथ यात्रा महोत्सव का आगाज भी हो गया है।आपको बता दें कि दुनिया के पालनहार भगवान जगन्नाथ खुद भी बीमार पड़ गए हैं, ये सुनकर भले ही अजीब लग रहा होगा लेकिन इस संसार में भगवान भी बीमार हो जाते हैं।
जी हां, हम बात कर रहे है भगवान जगन्नाथ स्वामीजी की। जो आज से 15 दिनों के लिये बीमार हो गए हैं। इस वजह से अब 15 दिनों के लिए भगवान जगन्नाथ स्वामी मंदिर के पट बंद कर दिए गए हैं।परंपरा के अनुसार स्नान पूर्णिमा के दिन वैदिक मंत्रोच्चार के साथ औषधीय जल से भगवान को स्नान कराया जाता है।
इसी दौरान भगवान बीमार पड़ जाते हैं। अब से उनकी दिनचर्या और भोजन व्यवस्था भी बदल दी जाती है। ठीक होने तक उन्हें प्रतिदिन वैद्य द्वारा दवा देने की परंपरा भी निभाई जाती है। इस दौरान मंदिर के कपाट भक्तों के लिए बंद रहेंगे।
भिलाई के भगवान जगन्नाथ स्वामी मंदिर में आज सुबह भगवान के स्नान यात्रा की रस्म अदायगी की गई। बीमार भगवान को ठीक करने के लिए भक्त प्रार्थना करते है। सबसे पहले भगवान को मंदिर के गर्भगृह से बाहर लाया जाता है। फिलहाल भगवान जगन्नाथ आज शनिवार को बीमार होने की वजह से आराम करेंगे और 15 दिन तक मंदिरों पट भी बंद कर दिए जाएंगे। जिस दिन वे पूरी तरह से ठीक होते हैं उस दिन जगन्नाथ यात्रा निकलती है।
इस परंपरा के संबंध में जानकार बताते हैं कि भक्तों के अपार प्यार में आज भगवान इतना स्नान कर लेते हैं कि वो बीमार पड़ जाते हैं और वो भी पूरे 15 दिनों के लिए। भगवान जगन्नाथ अर्द्घरात्रि को बीमार होते हैं, इस दौरान भगवान को आयुर्वेदिक काढ़े का भोग मन्दिर के पुजारी द्वारा लगाया जाता है। यह भी माना जाता है कि भगवान जगन्नाथ की लीलाएं मनुष्य जैसी हैं और मनुष्य रूप में ही रहते हैं। इसी कारण से मनुष्य पर लागू होने वाले सभी प्राकृतिक नियम उन पर भी लागू होते हैं। इसी वजह से वे बीमार हो जाते हैं। बीमारी की वजह से मंदिर में इन 15 दिनों तक कोई भी घंटे आदि नहीं बजेंगे। यहीं नहीं अन्न का भी कोई भोग नहीं लगेगा बल्कि आयुर्वेदिक काढ़े को ही प्रसाद में रूप में अर्पित किया जाता है।
जगन्नाथ धाम मंदिर में तो भगवान की बीमारी की जांच करने के लिए हर दिन वैद्य भी आते हैं। काढ़े के आलावा उन्हें फलों का रस भी दिया जाता है। इस दौरान दिन के दो बार आरती से पहले भगवान जगन्नाथ को काढ़े का भोग लगाया जाता है, वहीं रोज शीतल लेप भी लगाया जाता है। बीमारी के दौरान उन्हें फलों का रस, छेना का भोग लगाया जाता है और रात में सोने से पहले मीठा दूध अर्पित किया जाता है। अब भगवान 6 जुलाई को स्वस्थ हो जाएंगे और मंदिरों के पट खुल जाएंगे। इसके साथ ही भगवान के नव योवण रुप के भी दर्शन होंगे। उन्हें विशेष भोग लगाया जाएगा। 7 जुलाई को भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ श्री मन्दिर से मौसी घर जाने भक्तों को दर्शन देंगे यानि उसी दिन जगन्नाथ यात्रा निकलेगी। जहां वे अपनी मौसी के घर जाते रास्ते भर भक्तों के द्वारा हाथ से रस्सी के सहारे रथ खींचा जाता है और वहां भगवान नौ दिन रहेंगे।
छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिले के भिलाई नगर में उत्कल सांस्कृतिक परिषद श्री जगन्नाथ मन्दिर सेक्टर-6 में जगन्नाथ पुरी के तर्ज पर जगन्नाथ संस्कृति के आधार पर देव स्नान पूर्णिमा का आयोजन किया गया है। आज सुबह 9बजे जहाँ भक्तों के द्वारा भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा, बलराम, सुदर्शनजी को श्री मन्दिर से लाकर देव स्नान मंडप में 108 कलश से स्नान करवाया गया।
मंदिर के पुजारी तुषार कांति महापात्र ने बताया कि इस्पात नगरी भिलाई में ठाकुरजी की अनंत अनुकम्पा से जैसे पुरी धाम में ठाकुरजी की रथ यात्रा शुभारंभ का पहला उत्सव स्नान यात्रा होता है उसी तरह भिलाई जगन्नाथ मंदिर में भगवान अपने निज मंदिर से अपने बड़े भाई बलभद्रजी बहन सुभद्रा माता और चक्र सुदर्शनजी के साथ स्नान मंडप पहंडी में आने के बाद भगवानजी की यहां मंगल आरती, भगवानजी का अर्चन, उसके बाद भगवानजी को 108 कलश से नहलाया गया। भगवान बलभद्रजी को बत्तीस कलश, माता सुभद्रा को इक्कीस कलश, श्री जगन्नाथ भगवान का सैंतीस कलश और श्री सुदर्शन जी का 18 कलश है, सब मिल कर 108 कलश से चतुर्धाम मूर्तियों को स्नान कराया गया। उनके स्नान में बहुत सारे जडी बूटियां कपूर चंदन अगरु इत्र छुआ इत्यादि विभिन्न प्रकार की सामग्री मिलाकर गंगाजल सहित सभी तीर्थों के जल मिला कर भगवान को स्नान कराया गया। भगवान के स्नान बाद गजानन भेष में भगवान का श्रृंगार किया गया और स्नान पूर्णिमा व्रत यात्रा महोत्सव के पहले उत्सव का आज से भगवान का रथयात्रा महोत्सव शुरू हो गया है। नहाने के बाद लौकिक प्रथा के अनुसार भगवान बीमार हो जाते हैं। भगवान को बुखार हो जाता है फिर शाम को भगवान अपने अणसर गृह में पंद्रह दिन के लिए रहते हैं। इस दौरान प्रथा अनुसार में भगवान की औषधि चलती है। पंचमी से लेकर दशमी तक औषधि चलती है और एकादशी को भगवान ठीक हो जाते हैं। भगवान का फिर नया रूप बनाया जाता है, फिर नव यौवन दर्शन, नेत्रोत्सव के बाद फिर रथयात्रा में भगवान अपनी मौसी मां के मंदिर में जाते हैं।