Naxal Surrender in Bastar: बस्तर की धरती पर इतिहास, 210 नक्सलियों का सामूहिक आत्मसमर्पण
सीजी भास्कर, 17 अक्टूबर | छत्तीसगढ़ के बस्तर में गुरुवार का दिन इतिहास बन गया। कुल 210 नक्सलियों ने आत्मसमर्पण (Naxal Surrender in Bastar) कर मुख्यधारा में लौटने का फैसला लिया। पुलिस लाइन परिसर में आयोजित इस कार्यक्रम में महिलाओं की संख्या पुरुषों से अधिक रही, जो यह संकेत देती है कि अब जंगलों की बंदूकें शांति का रास्ता तलाश रही हैं।
सरकार की पुनर्वास योजना का असर, 153 हथियार किए जमा
आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों ने कुल 153 हथियार पुलिस को सौंपे। इनमें रायफल, पिस्तौल, रॉकेट लॉन्चर, बम और गोला-बारूद शामिल थे। सुरक्षा एजेंसियों ने बताया कि इनमें (Naxal Surrender in Bastar) के तहत बस्तर और कांकेर जिलों से आत्मसमर्पण करने वाले नक्सली भी शामिल हैं।
मुख्यमंत्री विष्णुदेव साय ने कहा कि सरकार हर उस व्यक्ति के साथ खड़ी है जो हिंसा छोड़कर संविधान में विश्वास रखता है।
Naxal Surrender in Bastar : घर, जमीन और तीन साल की आर्थिक सहायता
मुख्यमंत्री ने बताया कि आत्मसमर्पण करने वाले सभी नक्सलियों को सरकार की पुनर्वास नीति के तहत मकान, जमीन और तीन साल तक आर्थिक सहायता दी जाएगी। उन्होंने कहा, “हमारा उद्देश्य सिर्फ आत्मसमर्पण नहीं, बल्कि इन लोगों को सम्मानपूर्वक जीवन देना है।”
सरकार चाहती है कि जिन हाथों में कभी हथियार थे, अब वे खेती और रोजगार से जुड़ें।
कार्यक्रम में संविधान और गुलाब से हुआ स्वागत
कार्यक्रम स्थल पर सभी नक्सलियों को भारतीय संविधान की प्रति और एक गुलाब भेंट किया गया। यह प्रतीक था कि अब वे हिंसा नहीं, बल्कि कानून के रास्ते पर चलने के लिए प्रतिबद्ध हैं। आत्मसमर्पण करने वाले नक्सलियों को तीन बसों के जरिए पुलिस लाइन परिसर लाया गया।
इनमें कई महिला कमांडर भी शामिल थीं, जो लंबे समय से दंतेवाड़ा और नारायणपुर इलाकों में सक्रिय थीं।
1 करोड़ इनामी नक्सली रूपेश ने भी किया सरेंडर
सबसे बड़ा सरप्राइज तब आया जब सेंट्रल कमेटी मेंबर (CCM) सतीश उर्फ टी. वासुदेव राव उर्फ रूपेश (Naxal Surrender in Bastar) ने आत्मसमर्पण किया। रूपेश माड़ डिवीजन का बड़ा चेहरा था और उस पर 1 करोड़ रुपए का इनाम घोषित था। उसे पुलिस ने अलग वाहन से कार्यक्रम स्थल तक पहुंचाया।
इसके अलावा बाकी कई नक्सलियों पर 5 लाख से लेकर 25 लाख तक के इनाम थे।
अब बस्तर में बदल रहा है माहौल
विशेषज्ञों का मानना है कि इतने बड़े पैमाने पर हुआ (Naxal Surrender in Bastar) सुरक्षा एजेंसियों की लगातार कोशिशों का परिणाम है। सरकार की नीतियों, विकास कार्यों और संवाद की पहल ने नक्सल प्रभावित इलाकों में नई उम्मीद जगाई है।
स्थानीय लोग अब गांवों में सड़कें, स्कूल और अस्पताल देखना चाहते हैं, न कि बंदूकें और विस्फोट।