सीजी भास्कर, 3 नवंबर। देशभर के स्कूलों में एस्बेस्टस सीमेंट शीट के उपयोग पर तत्काल प्रतिबंध लगाने से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT Asbestos Sheet Case) ने इन्कार कर दिया है। एनजीटी ने कहा कि वर्तमान में कोई ठोस वैज्ञानिक साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं जो यह साबित करें कि स्कूल भवनों में इस्तेमाल हो रही एस्बेस्टस शीट सीधे तौर पर बच्चों के स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन रही हैं।
एनजीटी ने माना कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय (MoEF) की ओर से दायर हलफनामे में यह स्वीकार किया गया है कि अपक्षय के दौरान एस्बेस्टस फाइबर हवा, पानी और मिट्टी में प्रवेश कर सकते हैं, लेकिन यह भी स्पष्ट किया गया कि भवनों में लगी एस्बेस्टस शीट सामान्य स्थिति में स्वयं फाइबर नहीं छोड़तीं।
पीठ, जिसमें न्यायमूर्ति अरुण कुमार त्यागी (न्यायिक सदस्य) और डॉ. अफरोज अहमद (पर्यावरण सदस्य) शामिल थे, ने कहा कि “जब तक कोई ठोस वैज्ञानिक प्रमाण उपलब्ध नहीं होता, तब तक देशभर के स्कूलों में एस्बेस्टस सीमेंट शीट के उपयोग पर प्रतिबंध लगाना उचित नहीं होगा।”
साथ ही, एनजीटी ने केंद्र सरकार और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को निर्देश दिया है कि वे अगले छह महीनों के भीतर वैज्ञानिक साक्ष्यों की समीक्षा कर ‘एक्शन टेकन रिपोर्ट (ATR)’ तैयार करें। इस रिपोर्ट के आधार पर आगे की नीति बनाई जाएगी और इसे सभी राज्यों व केंद्र शासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को भेजा जाएगा।
ट्रिब्यूनल ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के 2011 के “कल्याणेश्वरी बनाम भारत सरकार” निर्णय का भी हवाला दिया, जिसमें शीर्ष अदालत ने एस्बेस्टस के पूर्ण प्रतिबंध की याचिका खारिज कर दी थी।
एनजीटी के अहम निर्देश
एस्बेस्टस के संपर्क में आने वाले क्षेत्रों में धूम्रपान, खाना-पीना पूरी तरह प्रतिबंधित हो।
सूखी सफाई या फावड़ा चलाने से बचा जाए, ताकि एस्बेस्टस धूल हवा में न फैले।
एस्बेस्टस शीट के स्थापन या रखरखाव के दौरान सुरक्षा प्रोटोकॉल का सख्ती से पालन किया जाए।
एस्बेस्टस अपशिष्ट के निपटान के लिए विशेष लैंडफिल साइटें बनाई जाएं, ताकि यह अन्य कचरे से न मिले।
याचिका का विवरण
यह मामला अमर कॉलोनी निवासी डॉ. राजा सिंह की याचिका से शुरू हुआ था, जिसमें मांग की गई थी कि ग्रामीण इलाकों के स्कूलों में इस्तेमाल हो रही एस्बेस्टस शीट पर तत्काल प्रतिबंध लगाया जाए। याचिकाकर्ता का तर्क था कि समय के साथ ये शीट भुरभुरी हो जाती हैं और उनसे फाइबर निकलकर हवा में मिल जाते हैं, जिससे बच्चों में फेफड़ों की बीमारियां और कैंसर जैसी गंभीर समस्याएं हो सकती हैं।
उद्योग को मिली राहत
एनजीटी के इस फैसले से फाइबर सीमेंट उत्पाद निर्माता संघ (FCPMA) को बड़ी राहत मिली है। 1981 में स्थापित यह संगठन देश के राजस्व में करीब ₹10,000 करोड़ का योगदान देता है और तीन लाख से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करता है।
