सीजी भास्कर, 03 अप्रैल। दिल्ली-एनसीआर में पटाखों पर पूरे साल बैन लगाने के आदेश में बदलाव से सुप्रीम कोर्ट ने मना कर दिया है। आतिशबाजी Firecracker बनाने वाली कंपनियों की तरफ से कहा गया था कि वह दिवाली के आसपास के महीनों में लगने वाली रोक हटाने के लिए नहीं कह रहे हैं, लेकिन जजों ने कहा कि अगर बाकी समय पटाखे बिकने दिए गए, तो लोग उनका स्टॉक जमा करके रख लेंगे।
पटाखा कंपनियों की तरफ से यह भी कहा गया कि वह गुणवत्ता में सुधार के लिए लगातार काम कर रहे हैं। ग्रीन पटाखे पुराने पटाखों की तुलना में 30 प्रतिशत तक कम प्रदूषण करते हैं, लेकिन जस्टिस अभय एस ओका और उज्ज्वल भुइयां की बेंच इस दलील से संतुष्ट नहीं हुई।
उन्होंने कहा कि जब कंपनियां और रिसर्च करें. जब वह पटाखों से होने वाला प्रदूषण न्यूनतम स्तर पर पहुंचाने में सफल हो जाएं, तब कोई आवेदन दाखिल करें।
याचिकाकर्ता की अजीब दलीलें : गुरुवार, 3 अप्रैल को सुप्रीम कोर्ट ने मुकेश जैन नाम के व्यक्ति को भी सुना. खुद को आईआईटी से पढ़ा हुआ प्रदूषण मामलों का जानकार बताने वाले इस याचिकाकर्ता की दलीलों से जज हैरान रह गए. जैन ने दावा किया कि पटाखे हवा को शुद्ध बनाने में योगदान देते हैं।
उन्होंने पटाखे की तुलना घर में जलाए जाने वाली धूपबत्ती से भी की। इस पर जजों ने पूछा कि क्या उन्हें धूपबत्ती और पटाखे में अंतर नहीं समझ आता? क्या वह घर पर भी पटाखे जला सकते हैं?
याचिकाकर्ता यही नहीं रुके। उन्होंने 1980 के दशक में प्रदूषण पर याचिका दाखिल करने वाले एमसी मेहता, पर्यावरण के मुद्दे पर शोध करने वाली संस्थाओं और मामले में अदालत की सहायता कर रहे वकीलों पर भी भारत विरोधी विदेशी संस्थानों से चंदा लेने का आरोप लगा दिया. उन्होंने कहा कि जो विदेशी संस्थाएं नक्सलियों की मदद करती हैं, वही इन लोगों को भी करोड़ों का चंदा दे रही हैं।
आखिरकार मुकेश जैन के आवेदन को बेंच ने खारिज कर दिया. जस्टिस ओका ने कहा कि वैसे तो इस तरह के फिजूल आरोप लगाने के लिए याचिकाकर्ता पर जुर्माना लगाया जा सकता है, लेकिन उसने ऐसी हरकत पहली बार की है इसलिए, हम जुर्माना नहीं लगा रहे।